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महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन का कथन है- “विज्ञान और आध्यात्म एक दूसरे के विलोम नहीं बल्कि एक दूसरे के पूरक हैं.” लेकिन आध्यात्म जब अन्धविश्वास का रूप लेकर विज्ञान को ओवरटेक करने लगता है तब बात कुछ बिगड़ जाती है. आध्यात्म प्रकृति के चिंतन का ही एक रूप है और प्रकृति के रहस्य इतने गूढ़ हैं कि इन्सान अभी एक प्रतिशत भी जान नहीं पाया है. इन्हीं अनजाने रहस्यों को जब लोग वैज्ञानिक तर्कों से समझ नहीं पाते हैं तो अन्धविश्वास पैदा होता है जिसे चमत्कार का नाम दिया जाता है.
प्रकृति के इन्ही रहस्यों से निर्मित एक बेहद वैज्ञानिक और प्राकृतिक घटना को, आज के युग में भी लोग चमत्कार का नाम देकर पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ पूजने जाते हैं और उसके पीछे का वैज्ञानिक सत्य जानते हुए भी आँखें बंद कर के उसको झुठलाने की कोशिश न जाने क्यूँ करते हैं. जी हाँ, हम कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व में 135 किलोमीटर दूर समुद्रतल से 13600 फुट की ऊँचाई पर स्थित अमरनाथ गुफा में बर्फ से बनने वाले प्राकृतिक शिवलिंग की बात कर रहे हैं. गुफा की परिधि लगभग डेढ़ सौ फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूँदें जगह-जगह टपकती रहती हैं. यहीं पर एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूँदों से लगभग दस फुट लंबा एक आकार बन जाता है जिसे शिवलिंग मान कर लोग अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं. यहाँ तक जाने का रास्ता बहुत ही दुर्गम है और सुरक्षा की दृष्टि से भी ठीक नही है. लेकिन धर्म के नाम पर कुछ भी न सोचने वाले लोग अपने जोखिम पर यात्रा करते है क्योंकि रास्ते में किसी अनहोनी के लिए भारत सरकार जिम्मेदारी नहीं लेती है .
प्राचीन काल की बात जाने दीजिये, तब लोगों के पास रेफ्रिजरेटर नहीं था और उन्हें नहीं पता था कि “शिवलिंग” उन में भी बन सकते हैं. इसीलिए जब उन्होंने पहाड़ों में इस तरह के एक विशिष्ट प्राकृतिक गठन को देखा तो इसे कुछ अलौकिक समझा. लेकिन अभी भी, शिक्षित लोग भी अमरनाथ को तीर्थ मान कर यात्रा करते हैं, जबकि उन्हें अच्छी तरह पता होता है कि जिसे शिवलिंग का नाम देकर वो पूजा कर रहे हैं वो मात्र गुफा की छत से टपकने वाले चूना मिश्रित पानी के, अत्यधिक ठंड में जम जाने के कारण बना हुआ स्तंभ है.
सामान्य परिस्थिति में शुद्ध पानी का फ्रीजिंग पॉइंट 0 डिग्री सेंटीग्रेड होता है जो अशुद्धि मिलने के कारण कम हो जाता है. गुफा से टपकने वाला पानी शुद्ध नहीं होता बल्कि उसमे कैल्सियम कार्बोनेट और सोडियम के कुछ लवण अशुद्धि के रूप में मिले होते हैं और गुफा का तापमान 0 से कई डिग्री कम रहता है. ऐसे में अशुद्ध पानी छत से गिरते गिरते 0 डिग्री से पहले ही जमने लगता है और नीचे पहुँचने तक पूरी तरह से जम चुका होता है. लगातार एक ही स्थान पर पानी की बूंदें टपकने से और जमते रहने से धीरे धीरे वहां एक बड़ा सा बर्फ का पिंड तैयार हो जाता है जिसे श्रद्धालु “बर्फानी बाबा” या “पवित्र शिवलिंग” जैसे नाम देकर पूजना शुरू कर देते हैं. जबकि इनमें से हर किसी श्रद्धालु के घरों के फ्रीजर में भी पानी की बूंदों के टपकने और जम जाने से बने हुए बिलकुल ऐसे ही शिवलिंग पाए जाते हैं. हमारे ही देश में ही नहीं बल्कि स्लोवाकिया और ऑस्ट्रिया की बर्फीली गुफाओं में भी इसी तरह के बर्फ से बने प्राकृतिक आकार पाए जाते हैं.
आपको याद होगा कुछे साल पहले, अत्यधिक गर्मी पड़ने के कारण, अमरनाथ की गुफा में भी पिंड बहुत ही छोटे आकार का तैयार हुआ था और तीर्थ यात्रियों का जत्था पहुँचने से पहले ही गर्मी के कारण पिघलने लगा था. ऐसे में गुफा के संचालनकर्ताओं ने दिल्ली से गुप्त रूप से नकली बर्फ मंगा कर नकली शिवलिंग तैयार किया था, जिसका बाद में पर्दाफाश हो गया था. इस घटना की आज तक कोई भी श्रद्धालु उपयुक्त कारण -सहित विवेचना नहीं कर सका है.
यहाँ पर मेरा इरादा आध्यात्मिकता को विज्ञान से जोड़ कर नास्तिकता का वर्चस्व स्थापित करने का बिल्कुल नहीं है. बल्कि मैं प्रकृति के हर एक तत्व में ईश्वरत्व, पवित्रता और आनंद की खोज के पक्ष में हूँ . प्रकृति ने ही सब को बनाया है और इसका अस्तित्व सब के लिए सामान रूप से महत्वपूर्ण है. इसकी कृपा को मेरा , तेरा कह कर बाँटने वालों और इसके नाम पर नफ़रत फ़ैलाने वाले हर किसी का घोर विरोध करना ही मनुष्य का परम दायित्व है. यही श्रद्धा है, यही आस्था है और यही असली पूजा है.
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