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उसके चेहरे पर नज़र पड़ते ही अजीब सी गिनगिनी होती थी.अपनी दादी का हाथ पकडे वो हर उस घर में जाती जहाँ उसकी दादी बर्तन मांजती थी.ज़रा सी बच्ची थी लेकिन उसको अपने बारे में शायद होश सँभालते ही सब कुछ पता हो गया था इसीलिए एकदम चुप रहती थी.कुछ खाने को दिया जाये तो चुपचाप ले कर खा लेती.मुंह का एक ही कोना खुलता था.दूसरा अजीब तरह से चिपका हुआ था.ऑंखें जैसे किसी ने पलकों पर चुन्नट डाल कर धागा खींच दिया हो.आश्चर्य होता था कि उसे दिखाई भी देता होगा या नहीं.अपनी माँ की चौथी संतान थी ये और पांचवी जचगी में उसकी माँ नवजात पुत्र सहित चल बसी थी.तब से दादी की उंगली से उसका हाथ छूटता न था.ऐसा नहीं था कि दादी उसे कलेजे का टुकड़ा बना कर रखती हो.वो तो उसे अपने साथ इसलिए रखे रहती थी ताकि वो जल्दी से जल्दी चौका बर्तन सीख जाये और पैसे कमाने लगे.हर समय डांटती रहती,उसके टेढ़े मेढ़े मुंह पर चाँटे लगाती और गाली देती रहती थी.डांट खाने के बाद जब वो रोती तो उसकी सिकुड़ी हुई आँखों से आंसू तो बहते ही साथ-साथ उसके चेहरे पर चेचक के दाग जैसे दो चार और गड्ढों से भी पानी बहा करता. अपने विकृत हाथों से वो आँखों के साथ-साथ पूरे चेहरे से बह रहे आंसू पोछती और बर्तन मांजने लगती.
लगातार तीन लड़कियों को जन्म देने के बाद उसकी माँ जब चौथी बार उम्मीद से हुई तो इसके शराबी बाप और इसी दादी ने मिलकर उसको किसी क्लिनिक में ले जाकर भ्रूण की जाँच करवाई.लड़की थी जो उन दोनों को नहीं चाहिए थी.पर माँ तो माँ ही होती है.चौका बर्तन कर अपना और अपने बच्चो का पेट भरने लायक कमा ही लेती थी.उसने साफ इंकार कर दिया और घर छोड़ कर जाने को तैयार हो गयी.शराबी आदमी और उसकी लालची माँ को लक्ष्मी जाती हुई दिखीं.मनुहार कर रोक लिया और धोखे से बच्चे का नुकसान करने वाली कोई देहाती दवा खिला दी.चार महीने से ज़्यादा का गर्भ था.
लोग कहते हैं कि लड़कियां बड़ी सख्त जान होती हैं आसानी से नहीं मरतीं.
वो ज़हरीली देहाती दवा बच्चे की जान तो नहीं ले पायी लेकिन अंदर ही अंदर अंग भंग करती रही.ये राक्षस रूपी माँ बेटे उस अभागी औरत को बिना बताये दवा खिलाते रहे और वो अनजाने में रोज़ ज़हर खाती रही.नियत समय पर लड़की जन्मी तो दाई डर कर चिल्लाते हुए कमरे से भाग आयी.दवा के कारण बच्ची के शरीर के अंग गल गए थे.हाथ पैर टेढ़े मेढ़े,चिपका हुआ मुंह,आँखों के जगह पर सिकुड़े सिकुड़े गड्ढे और गालों पर तीन चार बड़े बड़े छेद.
डायन दादी ने रोती हुई नवजात बच्ची का गला दबाना चाहा लेकिन उस सद्य प्रसूता ने पूरी हिम्मत के साथ अपनी बच्ची सास के हाथों से छीन ली और गंदे कपड़ों में ही चारपाई से उठ कर बाहर भागी.बाहर खड़ी मोहल्ले की औरतों ने सहारा दिया.सास और उसके गाली बकते हुए लड़के को समझा बुझा कर शांत किया और भगवान की देन समझ कर बच्ची को पालने के लिए कहा.वो बेचारी प्रसव के बाद की सिकुडन से पैदा हुए दर्द से दोहरी होती जा रही थी लेकिन चिल्ला चिल्ला कर अपनी बेटी को पालने का ज़िम्मा अकेले उठाने का ऐलान कर रही थी.
किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था.अगले साल फिर प्रसव पीड़ा को न झेल पाने के कारण वो जाति से कहारिन पर चरित्र से सिंहनी इस क्रूर संसार से विदा हो गयी,साथ में नवजात पुत्र को भी ले गयी.माँ बेटा दहाड़ मार मार कर रोये.कष्ट ज़्यादा यह था कि लड़का पैदा हो कर मर गया.
ये जी तो रही है.पर कभी सोचती होगी क्या कि वो किसलिए जी रही है??
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