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हिंदी ब्लॉगिंग के ‘हिंग्लिश’ स्वरूप को अपनाने से हिंदी के वास्तविक रंग-ढंग को बिगाड़े बिना ही हिंदी को व्यापक स्वीकार्यता मिल सकती है..Contest

Sincerely yours..
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ब्लॉगिंग चुनिन्दा विषयों पर अपनी भावनाओं व विचारों को नेट पर व्यक्त करने का एक प्रभावशाली व उपयोगी माध्यम है.


” ब्लॉग” व्यक्तिगत वेबसाइट पर लिखे हुए लेख होते हैं .यह शब्द वेब लॉग “web log ” शब्द का सूक्ष्म रूप है, इसे आरंभ में we blog कह कर प्रयोग किया गया जो बाद में केवल ‘ब्लॉग’ ही रह गया तथा इण्टरनेट पर प्रचलित हो गया.


ब्लॉगिंग का आरंभ नब्बे के दशक की शुरुआत में लांच की गई पहली नेटवर्किंग साईट के साथ ही हो गया था, किन्तु तकनीकी कच्चेपन के कारण ये सुविधा केवल अंग्रेजी में ही उपलब्ध थी इसलिए इसका उपयोग अधिकतर उन्ही देशों में होता था जहाँ जनसाधारण की भाषा इंग्लिश होती थी. भारत जैसे देश में जहाँ बुद्धिजीवियों की कमी नहीं है, प्रतिभा उन दिनों किताबों के पठन पाठन पर ही निर्भर रहती थी. कंप्यूटर एक तो महंगे होने के कारण सर्वसुलभ नहीं थे, दूसरे कंप्यूटर ज्ञान भी कुछ विशेष स्कूलों में ही पढाये जाने के कारण दुर्लभ था. और फिर कंप्यूटर पर इंग्लिश टाइपिंग जितनी आसान है, हिंदी टाइपिंग उतनी ही जटिल. इसीलिए हिंदी के विद्वानों के लिए अपने विचारों को नेट उपभोक्ताओं तक पहुंचाना लोहे के चने चबाने जैसा था.


बहरहाल इंग्लिश में ही अमिताभ बच्चन, प्रीतीश नंदी, प्रियंका चोपड़ा जैसे दिग्गजों ने ब्लॉगिंग की दुनिया में तहलका मचा ही दिया.
लेकिन हमारे भारत की सामान्य जनता भी विद्वता में किसी से कम तो है नहीं. केवल संसाधनों की कमी बुद्धिमता को उसकी परिधि के भीतर ही ख़तम कर डालती है.
अब जबकि कंप्यूटर सस्ते और सुलभ होते जा रहे हैं और देश का बच्चा बच्चा समसामयिक परिदृश्य पर जागरूक रहते हुए अपने रचनात्मक विचार प्रस्तुत करने के लिए तत्पर है, ऐसे में इंग्लिश/कंप्यूटर का कम ज्ञान होने के कारण प्रतिभा को सही दिशा नहीं मिल पाती और कितने ही सकारात्मक विचार अनंत में विलीन हो जाते हैं .

आज ब्लॉगिंग केवल मन की भड़ास निकालने का ही माध्यम नहीं है , बल्कि इसके द्वारा राजनीतिक विचार, विज्ञापन, शोधपत्र और शिक्षा का आदान-प्रदान भी किया जाता है. इसलिए कोई भी सामान्य व्यक्ति इसका उपयोग करके लाभान्वित हो सकता है और समूचे संसार को लाभान्वित कर सकता है.

इस सहस्राब्दी के प्रारंभ में रोमन इंग्लिश को हिंदी फॉण्ट में परिवर्तित करने का सॉफ्टवेयर ब्लॉगिंग की अभिलाषा रखने वाले हिंदी विद्वानों के लिए एक वरदान बन के आया,जिसे हम “हिंगलिश ” का नाम देते हैं . इसके द्वारा हिंदी में उपजे अपने विचारों को इंग्लिश की -बोर्ड से ही टाइप किया जा सकता है और जिसके लिए इंग्लिश का मामूली ज्ञान ही काफी होता है.
साथ ही “हिंगलिश”, क्लिष्ट हिंदी शब्दों के स्थान पर सहज व ग्राह्य शब्दों (स्लैंग्स )के प्रयोग को भी मान्यता देती है.
इस प्रकार यह हिंदी को विश्व पटल पर लाने के लिए एक वैकल्पिक किन्तु सटीक व्यवस्था है .


हिंदी लेखन जहाँ कलम द्वारा बेहद आसान होता है वहीँ टाइपिंग के लिए काफी कठिन और समय लेने वाला होता है.ऐसे में हिंदी लेखन का स्मार्ट तरीका “हिंगलिश ” कम समय में ज्यादा शब्द टाइप कर, अपनी बातों को त्वरित रूप से प्रसारित करने में सक्षम होने के कारण लोकप्रिय होता जा रहा है.


होना भी चाहिए. विकास के लिए परिवर्तन आवश्यक है  .जब तक हम परिवर्तन को जीवन में स्थान नहीं देंगे , तब तक विकास नहीं हो सकता . आने वाला समय पिछले युग से अधिक विकसित हो तभी सृष्टि का लक्ष्य पूरा होगा.


जिस प्रकार हम अपने पुरखों की अपार संपत्ति को अगर सोने की ईंट बना कर खजाने में रख दें तो वो उसी रूप में पड़ा रहेगा , उसका होना न होना बराबर होगा . लेकिन उसी संपत्ति को अगर विभिन्न प्रकार से निवेश करें तो उसमे उत्तरोत्तर विकास होता जायेगा. उसी तरह अपनी समृद्ध हिंदी भाषा का यदि हम चारण की तरह गुणगान करते रहे और प्रयोगों को स्थान न दें तो तरक्की की दौड़ में पीछे ही रह जायेंगे.


विद्या को परिमार्जित करने हेतु शोध का प्रावधान होता है. बिना शोध के कोई भी विद्या ,युग की बदलती हुई परिभाषाओं और आवश्यकताओं के लिए अपर्याप्त और अयोग्य हो जाती है.


शास्त्रों में तीन प्रकार के ऋणों अर्थात ‘पितृ ऋण”, “ऋषि ऋण” और “गुरु ऋण” का उल्लेख है . जिन्हें व्यक्ति को जीवनकाल में चुकाए बिना मोक्ष नहीं प्राप्त होता है.इनमे से पितृ ऋण संतानोत्पत्ति के द्वारा चुकाया जाता है परन्तु गुरु ऋण और ऋषि ऋण उनके द्वारा दी हुई विद्या और शिक्षा को भली भांति सीख के तथा उसे समाजोपयोगी बना कर प्रसारित और प्रवर्तित कर के चुकाया जाता है.


“वसुधैव कुटुम्बकम” हमारे देश का आदर्श वाक्य है. इसे सिद्ध करने के लिए हमें अपनी भाषा को कुटुंब से निकाल कर समूची वसुधा पर फैलने लायक बनाना होगा,इस के लिए हिंदी को उसके गुणों और सदमूल्यों के साथ विश्व के मानचित्र पर फैलाने के लिए उसका आधुनिकीकरण करना आवश्यक है.


इससे हम उसके वास्तविक रंग ढंग को बदले बिना , व्यापक स्वीकार्यता दिला सकते हैं.
अतः हमें परिवर्तन को स्वीकार करना और उद्विकास के लिए “हिंगलिश ” को अपनाना होगा.


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