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हमें भी जीने दो…

Sincerely yours..
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मीनल और उसकी माँ की आज फिर कहासुनी हो गयी…


बात वही पुरानी..माँ को मीनल का यूँ हर घडी घूमना फिरना पसंद नहीं , और मीनल को माँ की हर वक़्त की टोकाटाकी से नाराज़गी.दोनों ही एक दूसरे को अपना अपना पॉइंट समझाने में नाकाम रहती थी..जैसे ही मीनल नज़रों से ओझल होती, माँ को उसकी चिंता सताने लगती.और होती भी क्यों नहीं..वो थी भी तो ऐसी..सुनहरी रंगत, नाज़ुक चमकीला जिस्म, तभी तो वो “मीनल” है…. बैठती तो कभी थी ही नहीं. हर समय माँ के आगे पीछे घूम घूम कर यही कहती रहती थी…


“माँ , तुम मुझे कभी दूर क्यों नहीं घूमने जाने देती हो? कभी तुमने देखा है, अपनी कॉलोनी से आगे भी और सुन्दर सुन्दर स्थान हैं. न तो खुद जाती हो, न मुझे जाने देती हो.”


.माँ क्या बताये..उसने तो दुनिया देख रखी है..कैसे समझाए कि सुरक्षा बड़ी चीज़ है. घर से दूर निकल जाने पर अगर वो किसी मुश्किल में पड़ गयी तो क्या होगा..एक दिन वो भी था जब माँ खुद मीनल की ही तरह बच्ची थी.वो ही जानती है कि किन हालात को झेल कर वो आज जिंदा है.खुद उसकी माँ ही न जाने कैसे दुश्मनों के हाथ पड़ गयी और अपनी जान गँवा बैठी..


ये सब बातें वो कई बार मीनल को समझा चुकी है..लेकिन वो नादान, अपने स्वभाव से मजबूर, दो पल भी चैन से नहीं रह पाती.. उसका चंचल स्वभाव व हर नयी और लुभावनी चीज़ की और आकर्षित होने की प्रकृति ही उसकी जान की दुश्मन बन बैठी है…


आज भी, बात ऐसे ही शुरू हुई.मीनल लाख मना करने के बाद भी घूमते घूमते कहीं दूर निकल गयी, लेकिन आज वह खुश नहीं बल्कि पेंच ताव खाते हुए हुए लौटी..पूछने पर पता चला कि आज इनकी कॉलोनी में कुछ लोगो ने कचरा फेंक कर वातावरण दूषित कर दिया है..मीनल वहां तक पहुँची तो सही लेकिन नजदीक जाते ही कुछ घुटन, जलन और बेचैनी सी होने लगी और वो घबरा कर वहां से भाग आयी…माँ की समझ में बात आ गयी..वो चुपचाप सुनती रही…


मीनल गुस्से से तिलमिला रही थी..
“ये भी कोई बात होती है,किसी को लोग चैन से जीने नहीं देंगे ,अपनी गन्दगी ला कर हमारे घर में डाल देते हैं.ये नहीं सोचते कि हम भी जीना चाहते हैं..हमें भी भगवान ने जीने का हक दिया है .. .”
माँ ने बीच में रोक कर कहा..

“जब कहा था कि दूर न जाया करो तब तुम्हारी समझ में नहीं आया..यहाँ देखो , हमारे घर के अन्दर कितना साफ सुथरा माहौल है…”


“लेकिन माँ.,कब तक कोई अपनी जगह पर रुका रहेगा..कभी न कभी तो खुली हवा में सांस लेने का मन होता है, तुम्हारा नहीं होता क्या??…”


“ये दुनिया ऐसी ही है..यहाँ कोई किसी को अपने हिसाब से जीने नहीं दे सकता ..कोई अगर अपनी दुनिया में हंसी ख़ुशी जीना चाहे तो तो उसे सामर्थ्यवान लोग जीने नहीं दे सकते ..एक की ख़ुशी ऐसे ही दूसरे को खटकती है..”


“क्यों माँ??”


“यही तो आज तक पता नहीं कि शक्तिशाली लोग निर्बल को चैन से क्यों जीने नहीं देते… “


वो फिर बडबडाने लगी…”अब तो उस गन्दगी की वजह से हमारे घर का वातावरण भी दूषित हो चला है. मैं देख कर आयी हूँ, लोग बड़ी बड़ी गाड़ियों और मोटे मोटे पाइपों से कचरा ला कर हमारी कॉलोनी में डालते जाते हैं..”


माँ को भी थोड़ी चिंता हुई…

‘इस तरह तो एक दिन पूरी कॉलोनी ही गन्दगी से भर जाएगी..तब आखिर हम कहाँ जायेंगे…हमें तो ईश्वर ने इस लायक भी नहीं बनाया है कि हम अपनी जगह छोड़ कर कहीं दूसरी जगह जा के जी सकें..’


वैसे कुछ दिनों से वो भी महसूस कर रही थी कि अब पहले की तरह जलवायु में ताजगी नहीं रह गयी है.. कुछ अजीब सा धुआं धुआं सा हर समय छाया रहता है..कभी कभी आँखों और त्वचा पर जलन, घुटन और साँस लेने में परेशानी सी भी महसूस होती है….
यह क्या..मीनल फिर गायब थी….
अचानक वो कहीं दूर से भागी हुई आती दिखाई दी..

“माँ, .लगता है हम किसी बड़ी मुश्किल में फँसने वाले हैं .. मैं थोड़ी ही दूर गयी थी कि लगा साँस नहीं ले पा रही हूँ, तो वापस तुम्हारे पास चली आई.. लेकिन देखो यहाँ भी कितनी उमस और घुटन है..आओ न माँ, हम आज कहीं घूम के आते हैं..घर में भी तो दम घुट रहा है..कॉलोनी के सभी लोग कह रहे थे कि अब यहाँ साँस लेना भी मुश्किल हो रहा है..आज तो सभी लोग शुद्ध हवा की तलाश में अपने अपने घरों से बाहर निकल आये हैं..”


माँ को मीनल की बात ठीक लगी. सोचा , चलो थोडा बाहर ही निकल कर देखते हैं, शायद कुछ साँस आये .वो दोनों .बाहर निकली तो देखा कि पूरी कॉलोनी के लोग अपने अपने घरों से निकल पड़े हैं..सभी बेचैन हैं..घुटन, साँस लेने में परेशानी , आँखों में जलन जैसी चीजों से सभी परेशान थे .सारे लोग बेतहाशा इधर उधर भाग रहे थे कि कहीं तो राहत मिले…तभी किसी एक ने कॉलोनी की सीमा के बाहर झाँका..वहां साफ़, शुद्ध ,ताज़ी, ऑक्सीजन से भरपूर हवा थी..फिर क्या था, एक एक कर के सारे लोग कॉलोनी की सीमा से बाहर हो कर ताज़ी हवा लेने लगे…प्राणवायु अन्दर जाने लगी तो जैसे जीवन का संचार होने लगा..
परन्तु दुर्भाग्य..


वहां पर उनसे अधिक शक्तिशाली किसी दूसरी जाति के लोग खड़े थे..इन बेचारे दम घुटते हुए लोगों को खुली हवा की चाहत में अपने बंद घरों से खुद बखुद निकलते देख कर उनकी आँखें चमकने लगी.इससे पहले इन बेचारे कमज़ोर लोगो को उनके घर से पकड़ने के लिए इन शक्तिशाली लोगो को खासी मेहनत करनी पड़ती थी. आज तो उनका शिकार बिलकुल सामने अपने आप आ गया था. और वो भी सैकड़ों की संख्या में …..


उनको इस से क्या मतलब कि ये बेचारे किस मजबूरी के कारण अपने घरों से बाहर निकले हैं..किसी का दम घुटता हो तो बला से घुटे .. , कोई खुली हवा में साँस लेना चाहे तो चाहता रहे ..

निर्बलता खुद अपने आप में एक बहुत बड़ा अपराध है ..


निर्बल अपनी निर्दोषिता को सामर्थ्यवानो के विरुद्ध हथियार बना कर कभी नहीं जीत सकता..क्योंकि वे अपने स्वार्थ के चलते उनकी निर्बलता को अपना बल बना कर उनका शोषण करना चाहते हैं…

बहरहाल…वहां पर वो शक्तिशाली लोग, इन दम घुटते, सांस लेने को आतुर कमज़ोर लोगो को जल्दी जल्दी पकड़ कर बंधक बनाने लगे..
मीनल अपनी माँ से न जाने कब की बिछड़ चुकी थी ..एक ओर माँ को ढूंढती थी तो दूसरी ओर फिर जान बचाने के लिए भागती थी..आज उसे रह रह के अपना प्यारा , साफ सुथरा , निर्मल शीतल, प्राणपोषक घर याद आ रहा था और याद आ रही थी माँ की चेतावनी….
“प्यारी बेटी, घर के पास ही रहना , दूर जाने पर जान को खतरा हो सकता है…..”

पर अब क्या हो सकता था..अब तो स्थिति इतनी बिगड़ चुकी थी की घर भी सुरक्षित नहीं रह गया था… वो सब के सब मजबूर , क्या करते.. घर में घुसते तो इन्ही शक्तिशाली लोगो द्वारा फेंके गए कचरे के ही कारण दम घुटता , ..और बाहर निकलते तो उन्ही लोगो के द्वारा अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए पकड़ लिए जाते ..
फिर क्या होना था…

शक्ति के अनाचार से ,विवशता की सदाशयता पराजित हो गयी…..

वो सारे कमज़ोर और मजबूर लोग एक एक कर के शक्तिशालियों की गिरफ्त में आ गए..और जिन्होंने बच कर भागना चाहा, वो दम घुटने के कारण अपनी जान गँवा बैठे…

और फिर…अगले दिन लोगो ने अख़बार में पढ़ा …..
“नदी में डाले गए फैक्ट्री के कचरे के कारण पानी में सल्फर, फॉस्फेट, सिलिका , लेड जैसे विषैले तत्वों का अनुपात बढ़ने से पानी में ऑक्सीजन की मात्रा खतरनाक स्तर तक घटी..शुद्ध वायु लेने के लिए जल के ऊपर उतराती हुई सैकड़ो मछलियों का किनारे पर खड़े लोगों ने जी भर के शिकार किया..”

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