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कभी ऐसा भी तो हो..

Sincerely yours..
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पिछले दिनों मदर्स ‘ डे मनाया गया..


बड़ी ही धूमधाम रही..ग्रीटिंग कार्ड भी खूब बिके, साथ ही नेट पर भी ट्रैफिक ज़बरदस्त रहा….माँओं को कितना प्यार ,कितनी दुआएं, विशेज़, तोहफे,बहुत कुछ मिला ..सारे प्यारे दुलारे लाडलों और लाडलियों ने अपनी अपनी माँओं पर जी भर के प्यार उडेला..माँओं ने भी खूब ऐश किये. जी भर के सेवा टहल हुई , मज़े रहे..बस…..
वैसे बच्चे अपनी माँ को साल भर प्यार करते हैं ..मुझे नहीं लगता कि अपना सब कुछ न्योछावर कर देने वाली माँ को बच्चे साल में सिर्फ एक दिन के लिए ही “मलिका” का रुतबा देते होंगे ..उनकी हमेशा पूरी कोशिश रहती है कि उनकी कोई हरकत ऐसी न हो जिससे माँ को कष्ट पहुंचे लेकिन ….
लेकिन उम्र का तकाजा कुछ ऐसे काम करवा ही देता है जो कोई और समझे न समझे माँ तो समझ ही जाती है…
बच्चे अपनी हरकतें छुपाते हैं , ताकि माँ को कष्ट न हो, और माँ अपना कष्ट छुपाती है ताकि बच्चा न उदास हो…
दोनों ही एक दूसरे का ख्याल रखते है..


लेकिन एक बात है..
ये तोहफे, कार्ड, या थोड़ी देर का लाड प्यार जताना, क्या एक माँ को अपने बच्चे से यही दरकार होती है.. ?
माँ अगर चाहती है कि उसका बच्चा एक अच्छा इन्सान बने, या अच्छी पढाई कर के अच्छा रुतबा हासिल करे तो ये सब किस के लिए…?
बच्चे की तरक्की के लिए रात दिन दुआ करने वाली माँ का इसमें कोई स्वार्थ तो होता नहीं है..वो अगर रातों को जाग कर बच्चे के स्वास्थ्य की चिंता करती है, या उसकी पढाई लिखाई और देख भाल के लिए अपनी किसी महत्वाकांक्षा का बलिदान करती है तो ये उसकी अपनी ख़ुशी , अपना चयन है….बच्चे को दुनिया में लाने से पहले ही माँ को ये पता होता है कि आने वाले दिन उससे ये सब बलिदान माँगेंगे..


बाद के दिनों में जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और किसी अच्छे मुकाम पर पहुँच जाते हैं तो माँ को उन से अपनी सेवाओ के बदले में कोई हिस्सा नहीं लेना होता है..


वो तो सिर्फ थोड़ी सी पहचान, थोडा सा भरोसा, और थोड़ा सा गौरवान्वित होने का मौका चाहती है..बस और कुछ नहीं..


ऐसे में मुझे लगता है , जवान होते बच्चों की बदली हुई आदतें देख कर एक माँ क्या कुछ महसूस नहीं कर लेती होगी…बिलकुल कर लेती है…..

ज़रूरी नहीं कि हर किसी में गलत आदतें ही हों..कभी कभी बच्चे अपनी परेशानियाँ, तनाव भी छुपाते हैं, लेकिन माँ तो माँ है न , भाँप ही जाती है…


मैं ने अपने बेटे की मदर्स’ डे विश के बदले में एक कविता लिख कर उसे गिफ्ट की….


लेकिन मेरी ये कविता हर माँ की तरफ से हर उन बच्चों के नाम है, जो अब बच्चे नहीं रहे…जवान हो गए हैं,और अपनी माँ से भी ज्यादा समझदार हो गए हैं….


कभी ऐसा भी तो हो….
मचल उठे तू मेरी बाँहों में आ के छुपने को,
वही पहले की तरह ढूंढे मुझे यहाँ और वहां..


न हो तैयार मेरे आंचल का छोड़ने को सिरा,
वही पहले की तरह नाचे मेरे आस पास..


वो गर्मियों में, उमस में, या कि पसीने में,
तुझे मिले ठंडक चिपक कर मेरे कलेजे से….


हजारों लाखों में भी तू मुझे तलाश करे,
मेरी महक से खिंचा आये सब कुछ छोड़ के तू….


कोई कितना भी पुकारे दे लालच तुझे खिलौनों का,
तू मेरे साथ रहे बन के खिलौना मेरा…


कहाँ गया वो मेरा लाल, तू वो नहीं लगता,
तुझे तो रास अब आते हैं जश्न दुनिया के…


माँ की मुस्कान से प्यारे अब दोस्तों के ठहाके,
रोटी वो चिमटे की सूख गयी चाउ -मीन तले…


तू मेरे सामने हो कर भी कहीं होता है और,
एक दिल, एक दिमाग जैसे कहीं और भी हो…


कभी ऐसा नहीं होता तू मुझे ढूंढता आये औ कहे,
अज बस तेरी ही गोदी में छुप रहूँगा माँ…


कभी ऐसा भी हो कि मैं भी कसम खा के कहूँ,
मेरा बेटा है वो मुझसे न कुछ छुपायेगा…


कभी ऐसा हो तेरी बातों को मैं बिना डर के,
हमेशा मानूँ सच बिना किसी अंदेशे के ….


मैं जैसे जान लेती हूँ तेरे बताये बिन,
तू अपनी बात कह दे मेरे इल्म से पहले…


कभी तू मुझसे कहे , माँ ओ मेरी प्यारी माँ,
तेरा बेटा हूँ , कभी सर न तेरा झुकाऊँगा …


मैं सोचती हूँ वो दिन आये कभी तेरा नाम,
कहीं पुकारे कोई और मैं शान से झूमूँ…


कभी ऐसा भी हो कि कोई कहे वो देखो,
“प्रखर” की माँ है वो……
कभी ऐसा भी तो हो……


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