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सारे जहाँ से अच्छा….

Sincerely yours..
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मैं आजकल ज़रा मतिभ्रम की स्थिति में हूँ…

उम्र का वो मोड़ आ चुका है, जहाँ अब कुछ नया सीखना जानना बाकी नहीं रह गया है. ऐसा नहीं कि मैं बहुत ज्ञानी हो गयी हूँ , बल्कि तात्पर्य ये है कि मस्तिष्क रूपी कंप्यूटर की मेमोरी अब फुल हो चुकी है. सामने बहुत सी नयी बातें तो हैं, लेकिन उसकी छाप बन सकने की जगह अब नहीं है.वहीँ दूसरी ओर जो भी फालतू फाइलें लोड हैं उनको डिलीट करने का भी कोई प्रावधान नहीं है..उस पर से तुर्रा ये कि ज़रा सा भी जोर डालिए तो हैंग हो जाता है…


चपन में पढ़ा ये कि अपने देश पर गर्व होना चाहिए,और आज तक एक सच्चे देशभक्त की तरह करते भी आये, .. गर्व यानि कि हमारा देश महान है… तभी तो..इतिहास, भूगोल, साहित्य, संस्कृति पढ़िए तो वास्तव में देश की महानता पर सर गर्व से ऊँचा हो जाये..और अपने चारों ओर देखिये तो समझ में ही नहीं आता कि किस किस बात पर गर्व करें …
फिर भी सारे देश में सच्चे देशभक्त दो ही हैं , एक भारत के प्रथम अंतरिक्षयात्री   श्री राकेश शर्मा…जिन्होंने तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के पूछे जाने पर कि “ऊपर से हिंदुस्तान कैसा दीखता है?..” बिना सोचे समझे कह दिया..

“सारे जहाँ से अच्छा..”

और दूसरे हम जिसके पास देश को महान मानने के लिए बहुत सारे कारण हैं..


हमारा देश महान है, जहाँ देवताओं की सर्वोच्च शक्ति एक नारी के रूप में दर्शायी जाती है, जिनका भक्तजन बड़े ही टीम टाम से पूजा अर्चन का टिटिम्मा करने के उपरांत अपने घर की साक्षात् अन्नपूर्णा , रत्नप्रसूता का निरादर, शोषण और दोहन करते हैं. यहाँ तक कि 10 वर्ष से कम आयु की बालिकाओं को साक्षात् कन्याकुमारी मान कर उनकी चरण वंदना की जाती है, दूसरी ओर छोटी उम्र की नादान भोली भाली लड़कियां, जिन्हें अभी अपने लड़की होने के कारण का भी पता नहीं होता है, उन्हें हवस का शिकार बनाने वाले मानसिक विकृत पुरुषो की संख्या समाज में बढती चली जा रही है..


हमारा देश महान है , हम अपने राष्ट्रीय गान “जन गण मन अधिनायक जय हे ” सुन कर गौरवान्वित हो जाते हैं, सम्मान में खड़े हो जाते है.. इतना भी नहीं याद आता ये महिमा मंडन हमारा नहीं बल्कि इंग्लैंड के महाराजा , महारानी की शान में लिखा गया कोरी चाटुकारिता से भरा हुआ गीत है. जिसे गाना/लिखना 1919 में हमारी दासत्वगत मज़बूरी रही होगी , 1947 में जल्दीबाज़ी, और 24 जनवरी 1950 को जब असेम्बली में संविधान द्वारा इसे राष्ट्रगान का दर्जा दिया जा रहा था , तब से लेकर अभी तक, शायद देश इस मानसिक अवस्था में नहीं आया कि गरीबी, बेरोज़गारी, दुर्भिक्ष, भुखमरी,आदि समस्याओं से जूझते हुए आजाद भारतवर्ष में कोई ऐसा कवि पैदा होता जो देश के लिए बंगाली भाषा नहीं बल्कि निजी राष्ट्रभाषा में एक अदद ऐसा गीत लिख देता जिसमे कम से कम ब्रिटेन के सम्राट का गुण गान नहीं बल्कि हमारे देश की समृद्ध , गौरवशाली परंपरा का वर्णन होता ..रत्नगर्भा भारतभूमि के उन प्रान्तों का नाम होता जिनका वास्तव में अभी तक अस्तित्व विद्यमान है, न कि सिंध, मराठा, द्रविड़, उत्कल जैसे विलुप्त हो चुके राज्यों का उल्लेख जिन्हें आज़ादी के बाद पैदा हुए नागरिक भी , अभी तक शान से बखानते हैं..


हम महान हैं , हमारे देश में एक दुर्दांत आतंकवादी को खुद सत्तारूढ़ दल के वरिष्ठ नेता , उपहारों के साथ उसे उसके देश की सीमा तक पहुंचा आते हैं, जिसे न जाने कितने अधिकारीयों ने रात दिन का आराम हराम कर, जान पर खेल कर के दबोचा था…लेकिन अपने एक निर्दोष नागरिक को , जो किसी बेनाम अपराध के अंतर्गत 23 साल से पाकिस्तान की जेल में पशुओं से भी बदतर ज़िन्दगी जीता रहा, उसे कुछ भी कर के वापस अपने वतन, अपने घर वालों से जीते जी न मिलवाया जा सका ..हाँ अति अमानवीय व्यवहार के चलते उसकी मृत्यु हो जाने के बाद उसका शव अवश्य ही विशेष विमान से स्वदेश लाया गया, वो भी उन दरिंदों द्वारा किडनी, लीवर व दिल निकाल लेने के बाद ….


हम महान हैं , हमारे देश की महान पुन्योत्पल धरती का ही ये प्रताप है कि यहाँ की स्त्रियाँ अपने सत के लिए विश्व भर में जानी जाती हैं. सीता, सावित्री की सुनी हुई कहानियों को बिलकुल सच मान कर यहाँ की बालिकाएं आज भी उसी अटूट परंपरा की लकीर पर चलती चली आ रही हैं..पति के साथ सती होने का खैर अब न ज़माना रहा , न प्रयोजन , फिर भी एक पारंपरिक भारतीय नागरिक स्त्री (किसी भी धर्म को मानने वाली) का , पति के न रह जाने पर जीवन जीने का उत्साह समाप्त हो जाता है. ये एक अवचेतन से उपजी प्रक्रिया होती है, न की किसी की जोर ज़बरदस्ती..लेकिन अभी हाल ही में कुंडा(प्रतापगढ़ ) में अराजक तत्वों के हाथ ड्यूटी पर मारे गए सी ओ श्री जियाउल हक की विधवा ने ज़बरदस्त बोल्डनेस का परिचय देते हुए , पति की मृत्यु पर खुद को बहुत संयत रखते हुए एक उदहारण रखा..25 लाख का तुरत फुरत चेक मिलने के बावजूद उन्हों ने मुआवज़े के तौर पर अपने परिवार के दस लोगों के लिए नौकरी की मांग की, जिसमे 5 व्यक्ति उनके मायके के होते…कड़ी मेहनत से पाई हुई अपनी बी.डी. एस. की सीट को लात मारते हुए पति की मृत्यु से रिक्त हुआ सी . ओ. का पद माँगा, …इससे क्या फर्क पड़ता है कि उनके द्वारा छोड़ी गयी मेडिकल की सीट पर कभी कोई योग्य छात्र विराज सकता था….या सी. ओ. जैसे महत्वपूर्ण पद को कोई ऐसा व्यक्ति संभाले , जिसने उसको प्राप्त करने के लिए कड़ी प्रतियोगी परीक्षा पास करना तो दूर, ग्रेजुएशन तक नहीं किया है….


हम महान हैं क्योंकि हमारे देश में माध्यमिक के छात्रों को अच्छी से अच्छी पढाई के लिए सरकार द्वारा लैपटॉप दिया जाता है, शायद ये सोच कर कि विद्यालय के शिक्षक और निर्धारित किताबें सब बेकार हैं और बच्चे सारी पढाई नेट द्वारा कर लेंगे. लेकिन उनसे समझदार तो छात्र हैं जो अपने शिक्षकों पर भरोसा रखते हुए और उनका सम्मान करते हुए लैपटॉप को बाज़ार में बेचने पहुँच जाते हैं…


हम महान हैं , हम अपने मोबाइल में कॉलर ट्यून , क्रिकेट अलर्ट , सिनेमा न्यूज़ , लव शायरी और न जाने क्या क्या सुविधाओं के मज़े उठाने के लिए 100 -200 या इससे भी अधिक रुपये प्रतिमाह खर्च कर देते हैं लेकिन काम करने वाले मजदूर , रिक्शे वाले , सब्जी वाले को भुगतान करते समय 2 -4 रुपये कम करवाने के लिए घंटों झिक झिक करते हैं..


हम महान हैं क्योंकि हमें अब देश में होने वाले तमाम शर्मनाक कांडों जैसे बलात्कार, बम विस्फोट, सड़क दुर्घटनाओं आदि की आदत पड़ चुकी है. अब हम ऐसी ख़बरों से कुछ खास व्यथित नहीं होते, बस इतनी तसल्ली कर लेते हैं कि बलात्कृता हमारी कोई अपनी सगी सम्बन्धी तो नहीं थी …या बम विस्फोट वाले स्थान पर हमारे घर का कोई व्यक्ति तो नहीं था…..अगर नहीं , तो फिर बाक़ी सब ठीक है..


हम महान हैं क्योंकि हमारे देश में समलैंगिकता , अविवाहित माँ या लिव-इन सम्बन्ध जैसे विचारों को क़ानूनी मान्यता प्राप्त है..अब बिन बेटियों वाले लोग दामाद को और बिन बेटों वाले लोग बहू को नहीं तरसेंगे…हाँ, वंश को आगे बढ़ाने के लिए बाक़ी दोनों तरह के सम्बन्ध तो विद्यमान ही हैं…


हम महान हैं कि हमारे मंदिरों के खजाने सोने , चाँदी , हीरे जवाहरातों से भरे पड़े हैं, भगवान तो भगवान , अब भगवान के भक्तों की पूजा उनसे भी बढ़ चढ़ कर होती है..निर्जीव मूर्तियों को श्रद्धालुओं द्वारा लाखों करोड़ों के वस्त्र व गहने पहनाये जाते हैं..वहीँ मंदिर के बाहर कतार लगा कर बैठे हुए गरीब , भुखमरी ग्रस्त और छत विहीन जीते जागते मनुष्यों को रूपया, दो रूपया दे कर हम खुद को सर्वोत्कृष्ट परोपकारी समझते हैं…और क्यों न समझें.. अन्दर भगवान की मूर्ति को 1001 का दान, ताज़े फल और पूरी हलवा तथा चाँदी सोने का छत्र चढ़ा कर हमने स्वर्ग में अपनी सीट जो बुक करा रखी है..


हम महान हैं क्यों कि अपने बाप दादों की मेहनत की कमाई को रिश्वत के रूप में देकर सरकारी नौकरी प्राप्त करते हैं और फिर रिश्वत द्वारा उसी पैसे को वापस ला कर उन का खाली किया हुआ खज़ाना फिर से दूना चौगुना भर देते हैं….


हम महान हैं क्योंकि हम पश्चिम के उन्मुक्त विचारों और संस्कारों की जी भर के भर्त्सना करते हैं लेकिन हमारे अपने भारत देश की नयी पीढ़ी में संस्कार के नाम पर आज्ञाकारिता , मर्यादा अनुशीलन, आदि बचा है या नही , इस पर ध्यान देने कि ज़रा भी आवश्यकता नहीं समझते है..


और हाँ…


हमारा देश महान है क्योंकि बहुत दिनों से कोई बच्चा किसी बोरवेल में नहीं गिरा है….



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