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यूँ तो हर लड़की धरती पर एक तितली, एक मासूम परी , एक खिलखिलाती परवाज़ भरती निश्चिन्त चिड़िया की तरह पैदा होती है…लेकिन गुज़रते हुए समय के साथ धीरे धीरे समाज की सिखाई हुई बंदिशें , एक एक कर के उसके पंखों को नोचती चली जाती हैं….
जैसे जैसे वो बड़ी होती जाती है, उसे हर पल ये एहसास दिलाया जाता है कि इस दुनिया में तुम्हारी जगह एक लड़के से कमतर है..लड़की को इस कमतरी को दूर करना नहीं बल्कि इसको स्वीकार करना सिखाया जाता है..यही कारण है कि आज भी लड़की की यह हीनता बरक़रार है…
आज विज्ञान या साहित्य या शिक्षा का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहाँ लड़कियों ने अपनी बौद्धिक प्रतिभा का लोहा न मनवाया हो ..प्रकृति ने अपनी तरफ से बौद्धिक रूप से लड़कियों को लड़के से कहीं भी कम नहीं रखा है, लेकिन शारीरिक रूप से कमज़ोर होने का प्राकृतिक दोष एक ऐसा “Minus-point ” है जहाँ लड़कियां लड़कों से मात खा जाती हैं..
पिछले कई वर्षों से बोर्ड की परीक्षाओं में लड़कियों के परीक्षाफल का औसत लड़कों से अधिक होता आ रहा है..इतना ही नहीं, हमारे ही देश की कई महिलाओं ने अपनी अद्भुत प्रतिभा के बल-बूते पर सारे संसार में भारत देश का नाम ऊँचा किया है.
दुनिया जानती है कि 1971 का भारत-पाक युद्ध जीतना तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की नीतियों के बिना असंभव था..
आज हमारे देश में मिसाइल मिशन की प्रमुख टेसी थॉमस एक महिला ही हैं…
कहने का तात्पर्य यह है कि जब जब बौद्धिक क्षमता की बात आती है तो शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र बचा हो जहाँ लड़कियों ने अपनी योग्यता के झंडे न गाड़े हों…बौद्धिकता के प्रदर्शन में लड़कियां कही भी लड़कों के आगे घुटने टेकने को तैयार नहीं होती हैं …लेकिन ….जब शारीरिक शक्ति के बल पर कोई उन्हें दबा ले जाये तो वहाँ पर वो मजबूर हो जाती है…
अपने पिछले लेख में मैं ने कमो-बेश इसी तरह की बात कही थी …..
निस्संदेह लड़कियों का एक वर्ग ऐसा है जिन्हें अपनी मानसिक और बौद्धिक क्षमता पर भरोसा नहीं होता है, या यूँ कहिये कि कोई उन्हें उनकी सुप्त प्रतिभाओं का एहसास नहीं दिलाता है …..इसी लिए दूसरों को आकर्षित करने की चाह में वे शरीर प्रदर्शन का भोंडा रास्ता अपनाती हैं..लेकिन सभी लड़कियां तो ऐसी नहीं हैं न…
वे बच्चियाँ जो मेहनत से पढाई करती हैं, अच्छा करियर बना कर अपने माता-पिता व देश का नाम विश्व में ऊँचा करना चाहती हैं , क्या उनको खुल कर साँस लेने का हक नहीं है…???
यदि प्रकृति ने उनको पुरुषों की तुलना में कमज़ोर बनाया है तो क्या अपनी शक्ति का दुरूपयोग करना पुरुष को शोभा देता है..????
…16 दिसंबर की रात वो ऐसी ही एक बच्ची , जिसकी आँखों में आगे बढ़ने , पढ़ लिख कर अपनी शिक्षा द्वारा देश, दुनिया , समाज को कुछ देने के सपने रहे होंगे..अपने घर लौट रही थी…
माना कि उस समय रात के नौ या दस बजे थे, और उसके साथ एक पुरुष मित्र था..ये दोनों बातें , सामाजिक परिभाषा के हिसाब से गलत मानी जा सकती हैं..लेकिन..उन मनुष्य रूपी वहशी दरिंदों ने उसके साथ जो व्यवहार किया क्या वो करना चाहिए था..???
वो अभागी यदि अपने व्यस्त दिन का थोडा सा हिस्सा मनोरंजन के लिए देना चाहती थी तो क्या यह उसकी इज्ज़त या जान लेने लायक दोष था…???
न जाने वो किस घर -परिवार के पुरुष होते है , कैसे उनके संस्कार होते हैं जो स्त्री को केवल एक भोग्या, एक नारी शरीर के रूप में ही देखते हैं…उन कुत्सित मानसिकता वाले मानव वेशधारी राक्षसों को भूल कर भी यह ध्यान न आया कि कभी ऐसी ही किसी परिस्थिति में उनकी अपनी माँ, बहन या बेटी भी फँस जाये, तो उन पर क्या बीते गी…???
ज़रा सोचिये कि यदि कोई कभी अपना घर खुला छोड़ दे तो क्या उस घर में घुस कर चोरी करना ही कर्तव्य बनता है…???
कोई नहीं जानता कि उस दुर्भाग्यशाली काली रात को क्या हुआ था….अपने साथ घटित नृशंस काण्ड की जानकारी देने देने के लिए वो तो अब इस दुनिया में नहीं रही..लेकिन उसका वो एक अभागा मित्र , न जाने कुछ कह सुन पाने की स्थिति में होगा या नहीं.???..ईश्वर की कृपा और उसके माता पिता के सौभाग्य से उसकी जान को अब कोई खतरा नहीं है लेकिन जब तक वो जियेगा , क्या कभी उस भयावनी काली रात को भूल पायेगा…???
दिल्ली की उस भाग्यविहीना के साथ जो कुछ हुआ, वो इतिहास में स्त्री के साथ हुआ अब तक का सब से नृशंस काण्ड है…
या तो एक बार द्रौपदी को कौरवों ने घेर कर चीर हरण करने का प्रयास किया था लेकिन वो द्वापर युग था और द्रौपदी श्री कृष्ण की मुँहबोली बहन थी… हो सकता है इसीलिए इतनी तत्परता के साथ वे द्रौपदी की लाज लुटने से बचाने के लिए दौड़े चले आये हों…
परन्तु इस कलयुग में..जहाँ हर चप्पे चप्पे पर दुशासन और दुर्योधन पाए जाते हों, वहां कृष्ण कहाँ तक दौडें गे????
यहाँ तो स्त्री को अपनी सुरक्षा का प्रबंध खुद ही करना होगा..इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद यह निष्कर्ष तो नहीं निकाला जा सकता कि लड़कियाँ खुद को परदे में छिपा कर घर में बैठ जायें और अपनी प्रतिभा का खून कर डालें..
सोचने वाली बात यह है कि भारत जैसे पवित्र देश , जहाँ नारी के शक्ति रूप की पूजा की जाती है, जहाँ वैदिक काल से ही गार्गी व अपाला जैसी नारियां पुरुषों के समकक्ष बैठ कर शास्त्रार्थ करती आई हों, जहाँ के साहित्य, विज्ञान व शिक्षा के हर क्षेत्र में स्त्री का इतना योगदान रहा हो…. वहां स्त्री की दुर्दशा का ये चरम रूप सोचा भी नहीं जा सकता…
दिल्ली की उस अभागी बच्ची के साथ जो घृणित वीभत्स काण्ड हुआ उस के लिए समूचे पुरुष-वर्ग को तो दोषी नहीं ठहराया जा सकता है …जिस समाज में हम हैं, हमारे पिता , भाई, मित्र कोई तो ऐसी सोच रखने वाला नहीं है, बल्कि सभी सुसंस्कृत और संस्कारी पुरुष खामखा में इस काण्ड के कारण अपराध बोध से ग्रसित हो रहे हैं…
ऐसा नहीं है …ऐसी गन्दी मानसिकता उन्ही पुरुषों की होती है, जिनको बचपन से नारी का सम्मान करने के संस्कार नहीं मिलते हैं..
आज दुनिया इतनी आगे बढ़ चुकी है कि अगर हम ये कहें कि लड़कियां घर में छुप कर क्यों नहीं रहतीं तो यह न्यायोचित न होगा…समय है कि सभी की मानसिकता बदले…मनुष्य लिंग-भेद से परे जा कर मनुष्यता को सम्मान देना सीखे…एक दूसरे के व्यक्तित्व का आदर करना सीखे..
आज से भी अगर गन्दी और घृणित मानसिकता वाले पुरुषों का यह वर्ग समाज से समाप्त हो जाये तो हम समझें गे कि उस निर्दोष बच्ची का बलिदान व्यर्थ नहीं गया..और सही मायनों में यही उसके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी…
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