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चिराग जलने दो हमारे लहू से ……….

Sincerely yours..
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पड़िये गर बीमार तो तीमारदार कोई न हो,
और अगर मर जाइये नौहा ख़वा कोई न हो….


लगता है कि ग़ालिब साहब का भी ज़िन्दगी में कभी न कभी अस्पताल से साबका पड़ा होगा, तभी उन्हों ने अपने लिए ऐसी मार्मिक दुआ मांगी…कहने को तो अस्पताल जीवन दान केंद्र हैं और डॉक्टर साक्षात् भगवान ……लेकिन इन के हाथों जीवन पाने की प्रक्रिया के तहत बीमारी ग्रस्त अंग के ठीक होने के व्युत्क्रम में दिल इतना कमज़ोर हो जाता है कि झटके लगने भी बंद हो जाते हैं….
मैं तो खुद स्वास्थ्य के नियमों का इतनी कड़ाई के साथ पालन करती और करवाती हूँ कि मेरे घर में बीमारी का आना जाना ज़रा कम ही होता है..हालाँकि इस के लिए मुझे घर के लोग “control freak ” कहते हैं , लेकिन मन ही मन समझते भी हैं कि मेरे इसी अत्याचार का नतीजा है कि आज जब कि हर घर में , हर उम्र के दिल, जिगर, गुर्दे के मरीज़ पाए जाते है,…मेरे घर में अभी तक मामूली सर्दी, जुकाम या फ्लू के अतिरिक्त कोई और बीमारी झाँकने तक नहीं आयी…… लेकिन अचानक न जाने कहाँ से एक आसमानी आफत की तरह मेरे ससुर जी को ये अनोखी बीमारी हो गयी जिसमे उनकी पित्त की नली के बाहर की तरफ एक ट्यूमर हो गया और उसने नली को दबा कर पित्त का बहाव आंतों की तरफ से मोड़ कर वापस ब्लड की तरफ कर दिया…इलाज तो सिर्फ ऑपरेशन ही है लेकिन उसके पहले ब्लड में पित्त की मात्रा का नॉर्मल होना आवश्यक है तो तब तक आवश्यक ट्रीटमेंट के लिए अस्पताल में ही रहिये…..
उफफ्फ्फ्फ़……
प्राइवेट रूम न मिलने तक इमरजेंसी वार्ड में रह कर हमने क्या क्या देखा ये वर्णन कर पाना असंभव है………. एक कतार में लगे हुए तीस बेड …हर बेड के बीच में सिर्फ एक स्टूल रखने की जगह….और स्टूल पर बैठने वाले तथाकथित मज़बूत हौसले वाले लोग, जो सिर्फ उस पर बैठने से पहले तक ही साबित- जिगर हुआ करते थे..
वो नुमायाँ हिम्मत और पसमंज़र में बौखलाई सी स्टूल पर बैठी हुई मेरी ही मूर्ति थी जिसने ज़िन्दगी में पहली बार इंसानी जिस्म को बेहरकत ,बेसाँस, अकड़ते हुए देखा… तीन दिन में तीन मौतें ..सिर्फ एक हाथ के फासले पर…इससे पहले मौत का सिर्फ नाम सुना था, लेकिन वो इतना ठंडा कर देती है , ये नहीं पता था….
हालाँकि मैं अपने सर पर से अपने पिता का हाथ खो चुकी हूँ , लेकिन दुर्भाग्य की पराकाष्ठा है कि उस समय मैं उनसे इतनी दूरी पर थी कि उनके गुज़र जाने की सूचना तक मुझे काफी दिनों बाद मिल पाई…तब मैं ने लिखा था….


रास्ते पाँवों तले से बह गए,
हम जहाँ थे वहीँ पर रह गए,
कराह उठते थे मेरी उंगली के भी ज़खम से जो,
ज़ख्म इतना बड़ा जीवन का कैसे दे गए,
पता देते थे जो दुनिया जहाँ की बातों का,
पता चला ही नहीं वो इस तरह गए….


इमरजेंसी वार्ड में, मेरे स्टूल की दाहिनी तरफ वाली बेड की महिला कब जीवन से पराजीवन में पहुँच गयी, मुझे पता ही नहीं चला….
gastric cardiac arrest की शिकार …..जब डॉक्टर ने उनकी जीवन रक्षक प्रणालियाँ, ओक्सीजेन मास्क वगैरह हटाना शुरू किया तो मुझे लगा कि वो ठीक हो गयीं…मैं दम साधे बैठी चोर नज़रों से उनके सीने को देख रही थी..सच्चाई का आभास होते हुए भी नज़रें उनके शरीर में सांसों की हरकत ढूंढ़ रही थी..उनके साथ उनका बेटा आया था, जो दरवाज़े के बाहर था, वो भी नहीं दिख रहा था….तभी..अचानक….एक कर्मचारी उनके बेड के पास आया और बड़े ही निर्विकार भाव से बैंडेज का एक टुकड़ा फाड़ कर उनके पैरों के दोनों अंगूठों को एक साथ बाँधने लगा….मुझे झुरझुरी हो आई……यही होना है अंत में……???ये वही होंगी, जिन्हों ने बड़ी नज़ाकत के साथ कभी अपने प्रियतम से प्यार भरे पलों में कहा होगा…..”तुम्हारे सिवा कोई और मेरे पैर का अंगूठा तक नहीं छू सकता ” …और आज……..अस्पताल के एक अनजान चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने न केवल उनके पैर बाँधे बल्कि, हाथों के दोनों अंगूठों को सीने पर रख कर आपस में बांधा… पलकों को मूंदा… ..उन्हें करवट करा के बेड की चादर हटाई और दूसरी चादर उनके नीचे बिछा कर उसमें उन्हें लपेटना शुरू किया……….. वहां बैठना असंभव था….मैं ने अपने ससुर जी से कहना चाहा कि मैं बाहर जा रही हूँ, लेकिन मुंह से आवाज़ ही नहीं निकली….लड़खड़ाते , गिरते ,संभलते मैं वहां से बाहर निकली, लेकिन इमरजेंसी वार्ड की भयावहता का दायरा बहुत दूर तक था…पूरी गैलरी में दुखते, कराहते, निराश लोग, एक ख़ाली बेड की आस में ज़मीन पर चादर बिछाए रात और दिन काटते रहते हैं..किस किस को नज़रंदाज़ किया जाये और कैसे?? न जाने कब तक मैं बिना मतलब बाहर घूमती रही..अन्दर आने पर देखा कि उसी बेड पर एक नया मरीज़ आ चुका था…जानता भी नहीं होगा कि थोड़ी देर पहले यहाँ क्या घटित हो चुका है…..

अगले दिन तीन शहजादे, जो बाइक पर सवार हो कर लखनऊ की सड़कों को खुला आसमान समझ कर परवाज़ भर रहे थे…..लहू से नहाये हुए ,वार्ड में लाये गए…नाम ,पता, पहचान कोई नहीं जानता..भला हो मोबाइल के अविष्कारक का और अच्छे थे उनके माता पिता के सितारे , जो भयानक चोटों के बावजूद उनकी जान बच गयी..लेकिन तब तक मेरी सांस अटकी रही ……
बहुत कुछ है …..जो पहले कभी नहीं देखा, जाना , सुना…..क्या बताऊँ…..बस महसूस ही किया जा सकता है…वैसे अस्पताल तो बहुत बार आई हूँ…कभी अपनी तो कभी देवरानियों ,ननदों की ख़ुशी के लिए…..लेकिन वो मौका ऐसा होता है कि मर्मान्तक पीड़ा सहने के बाद भी मन में एक ख़ुशी का एहसास रहता है….अस्पताल से निकलते वक़्त जब बाँहों में एक नर्म मुलायम गुनगुना गुलाबी सा अपने ही कलेजे का टुकड़ा भी साथ रहता है तो कोई कष्ट , कोई खर्च याद ही नहीं रहता…वो अलग बात होती है….लेकिन इस तरह…कभी किसी को न आना पड़े….कभी भी नहीं …..
मैं बुद्ध भी तो नहीं हो सकती…राजा का बेटा नहीं हूँ न….”यशोधरा” साहब तो खैर जी लें गे लेकिन मेरे दो राहुल….?????मेरा बेटा मुझसे भी सात इंच लम्बा हो चुका है लेकिन अगर घर पर होता है तो मेरी गोद में सर रखे बिना सोता नहीं……नहीं ……….वापस तो आना ही पड़ेगा….”Thanatology ” का सिद्धांत मेरे जैसे कमज़ोर लोगों के लिए नहीं है….
वैसे एक बात का सुकून है…मेरी बरसों की साध पूरी होने वाली है………मैं कब से अंगदान करना चाहती थी..यहाँ SGPGI , लखनऊ के एनाटोमी विभाग में जा कर मैं अपना यह अरमान पूरा कर सकती हूँ….मित्रों, जल्दी ही मैं आपको ये शुभ सूचना देने वाली हूँ..
यहाँ से इस के सिवा और क्या लिखूं….आपका समय लिया है तो कुछ सन्देश भी होना चाहिए….मित्रों..अगर मेरी आंखें खुली हैं तो मैं सब को सुहानी सुबह की सूचना दे सकती हूँ…आप सभी से अनुरोध है कि स्वस्थ जीवन शैली अपनाएं…जान बूझ कर रोगों को बुलावा न दें….यूँ तो भविष्य के गर्त में क्या छुपा है कोई नहीं जानता लेकिन अपनी तरफ से तो कोई कोर कसर नहीं रखनी चाहिए….
“Precaution is better than cure” ये तो सब ने सुना है लेकिन आज़माते कम ही लोग हैं..तेल मसाले वाला गरिष्ठ अपोषक भोजन कभी कभी के लिए ठीक है लेकिन दैनिक चर्या में स्वस्थ , विटामिन और पोषक तत्वों से युक्त भोजन लें…..
निकोटिन और अल्कोहल , व्यक्ति के ही नहीं, समाज के दुश्मन हैं…जहाँ तक हो सके, इनसे दूर रहे…
अपने सुख के साथ साथ अपने अपनों के सुख के बारे में भी सोचें…
कुछ गलत करने से पहले सिर्फ एक क्षण के लिए आंखें बंद कर के अपने माता पिता/ बच्चों की तरफ से सोच कर देखें…


और अंत में…….


देहदान कर के जायें……
ज़रा सोचिये, हमारे अंग हमारे बाद भी जियेंगे….
हमारी सांसे रुक जाने के बाद भी हमारी आंखें अपनों के लिए प्यार छलकाएंगी…
हमारा अंतिम संस्कार कर के आने वाले को हमारे दिल की धड़कन हमारे बाद भी सुनाई देगी..
हमारे रक्तदान करने से किसी माँ की गोद सूनी न होने पायेगी और किसी का प्यार जिंदा रह सकेगा …..
इस एहसास को ओढ़े हुए जो आखिरी सांस आयेगी, वो सब के लिए कितना सुकून ले कर आयेगी………..
है ना………


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