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ऐसा भी होता है…

Sincerely yours..
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आप को शायद एक बार में विश्वास न हो..


कर्नाटक राज्य के कोलार जिले के बंगारपेट तालुक में सुन्दरपल्या नामक स्थान में एक प्राइमरी स्कूल ऐसा भी है जहाँ पर मध्याह्न भोजन बनाने के लिए शौचालय से पानी लिया जाता है…..पूरे स्कूल में सिर्फ एक ही नल लगा हुआ है जो कि शौचालय में है..बच्चे अपने पीने का पानी भी अपनी अपनी बोतलों में वहीँ से भर लेते हैं और मध्याह्न भोजन बनाने के लिए भी रसोइया वहीँ से पानी भर कर प्रयोग करता है..


हुआ यूँ कि कुछ दिनों पहले गैस सिलेंडर ख़त्म हो जाने पर जब रसोइये ने स्टोर से अतिरिक्त सिलेंडर की मांग की तो पता चला कि दूसरा सिलेंडर किसी टीचर के घर पहुँचाया जा चूका है..भोजन का समय नजदीक था…आकस्मिक आवश्यकता के लिए लकड़ियाँ रखी थीं लेकिन बाहर ही पड़ी थीं और रात की बारिश में भीग चुकी थीं.. ऐसी स्थिति में कोई और रास्ता न होते हुए रसोई के कर्मचारियों ने विद्यालय का एक दरवाज़ा ही काट डाला और उसे जला कर मध्याह्न भोजन तैयार किया..


बंगारपेट तालुक के नोडल ऑफिसर श्री सिद्धराजू का हास्यास्पद बयान ये रहा कि गैस सिलेंडर और लकड़ी न होने पर रसोइया बेचारा और क्या करता.. स्कूल के बच्चों को तो समय पर खाना चाहिए ..उन्हें ये कह कर तो समझाया नहीं जा सकता था कि गैस नहीं है तो खाना नहीं मिलेगा….


कोलार जिला पंचायत के उपाध्यक्ष श्री डी वी हरीश जब स्थिति का जायजा लेने के लिए सभी स्कूलों के निरीक्षण के लिए निकले तो वो यह देख कर दंग रह गए कि बच्चे शौचालय के नल से अपनी बोतलों में पानी भर रहे हैं …


पूछने पर पता चला कि अधिकांश स्कूलों में पानी की सप्लाई के लिए केवल एक ही नल है जो शौचालय में है..उसी के पानी को पीने और खाना बनाने के लिए भी प्रयोग कर लिया जाता है….
चौंका देने वाला तथ्य यह है कि राज्य सरकार द्वारा अकेले कोलार जिले के स्कूलों के लिए ही 1 करोड़ रुपये के मूल्य के वाटर फिल्टर्स की आपूर्ति की गयी है लेकिन वो सब अभी वैसे के वैसे पैक पड़े हुए हैं…उनको विद्यालय में लगवाने की किसी ने ज़रूरत ही नहीं समझी..हो सकता है कि वो सब धीरे धीरे स्कूल के टीचर लोगों के घर पर ही पहुँच जाये….


सोचने वाली बात है कि “अक्षर दासोहा” (कर्नाटक राज्य की मध्याह्न भोजन योजना ) के लिए वार्षिक 330 करोड़ रुपये का अनुमोदन है..जिस में से केवल किचेन के इंतजाम के लिए 90 करोड़ और पीने के पानी तथा शौचालय अदि के लिए 45 करोड़ है…….


हमारे देश की आइ टी राजधानी बैंगलोर से सिर्फ 70 किमी. दूर कोलार में जब योजनाओं के अनुपालन और क्रियान्वयन की यह स्थिति है कि शौचालय का पानी पिया जा रहा है और स्कूल के दरवाज़े काट कर खाना बन रहा है , तो सुदूर इलाकों की स्थिति सोची जा सकती है..
एक अन्य स्थान ‘अनेकल’ में सीलन और चूहों से भरे कमरे में अनाज रखा है ..अनाज साफ़ करना तो दूर की बात है, कमरे की भी शायद वर्षों से सफाई नहीं हुई है..


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एक दूसरे प्रकरण में……कोलार से 60 किमी दूर, चिक्काबल्लापुर जिले के अम्मागान्नाहल्ली नामक स्थान पर एक स्कूल में छात्राएं खुद ही स्कूल का शौचालय साफ करती देखी गयीं..पूछने पर पता चला कि विद्यालय में सफाई कर्मचारी की नियुक्ति ही नहीं की गयी है…शौचालय अधिक गन्दा हो जाने की स्थिति में छात्रों द्वारा ही साफ़ करवा दिया जाता है..स्कूल के अधिकारियों का कहना है कि छात्रों द्वारा श्रमदान के रूप में टॉयलेट साफ कर देने में बुराई ही क्या है…और फिर बड़े ही प्रेम से “लिंग भेद” को ध्यान में रखते हुए यह काम सिर्फ छात्राओं के ही जिम्मे आता है..


मज़े की बात ये है कि इस स्कूल को तालुक में “बेस्ट स्कूल ” के ख़िताब से नवाज़ा गया है…


हमारे लिए यहाँ शोर मचाने के लिए बचता ही क्या है??


जब योजना भी है, फंड भी है, सामान भी लाया जा रहा है , बच्चों को समय से खाना देने की सोच भी है तो हम किस चीज़ के खिलाफ आवाज़ उठाएं…??


कश्मीर से ले कर इंदिरा पॉइंट तक और गुजरात से आसाम तक बच्चों, विशेष रूप से बालिकाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य और समुचित भोजन के लिए तरह तरह के प्रयास किये जा रहे हैं….लेकिन नतीजा क्या है???वही ढाक के तीन पात……
क्यों???कभी सोचा है की सब कुछ होते हुए भी अभी हम बुनियादी समस्याओं से ही क्यों जूझ रहे हैं ……..???

इसी देश में मिसाइल मिशन की प्रमुख एक महिला है और बालिकाएं स्कूल में पढाई करने की जगह टॉयलेट साफ कर रही हैं….


ये सब सिर्फ इस लिए कि हमारी बुनियादी सोच नहीं बदली है…..कथनी और करनी में अंतर है…
जब बातें करने का समय आता है तो ज्ञानियों का बाज़ार लग जाता है और क्रियान्वयन के समय……..???
अब तो हम अपने को बदल डालें ……..वास्तव में कुछ करने की इच्छा लेकर काम करें ….अशिक्षा तो कोई कारण ही नहीं है..इन स्कूलों के टीचर, नोडल ऑफिसर, जिला विद्यालय निरीक्षक आदि क्या अशिक्षित हैं ?? नहीं…


तो फिर क्या कारण है कि स्कूल में पढाई के स्थान पर सफाई कर्मचारी को दी जाने वाली तनख्वाह बचाने का उपाय किया जा रहा है और स्वास्थ्य के मानकों को ताक पे रख कर भोजन और पानी दिया जा रहा है..


इस लिए कि जब आँख बंद कर लीजिये तो कुछ दिखाई नहीं देता है……….


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