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ये तो सोचा न था..

Sincerely yours..
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पिछले दिनों एक क्रांति हुई….वैचारिक क्रांति …..कुछ भी सोचा समझा पूर्वनियोजित न था.. बस प्राकृतिक न्याय की तरह सब कुछ अपने आप होता गया…हाँ ये कह सकते हैं कि सोचा कुछ और था और हुआ कुछ और…आग सुलगाई गयी थी हाथ सेकने को और उस में पतंगे खुद बखुद आ कर गिरते गए..
मंच पर जो कुछ भी हुआ ,आप सब ने देखा और पढ़ा..बात कैसे शुरू हुई कुछ पता नहीं , बस अचानक घमासान छिड़ गया..सब ने अपनी अपनी तलवारें निकाल ली ..दिल की भड़ास जो कि दोस्ती का आँचल ओढ़े बैठी थी, मौका पाते ही घूँघट हटा के मुंह उघारे सामने आ गयी..सब ने बहती गंगा में हाथ धोये , बल्कि डुबकियाँ ले ले कर नहाये….कुछ लोगो ने किनारे पर खड़े हो कर तमाशा देखा और कुछ ने हवन कुंड में घी डाला ..


आप समझ तो रहे ही हैं कि मैं क्या कह रही हूँ..


किस्सा मुख़्तसर यूँ है कि किसी को किसी की भाषा से परेशानी, किसी को आक्रामक रवैये से..कोई व्यक्तिगत कमेंट्स से परेशान था तो कोई अपने कमेंट्स को न समझे जाने से..


मैं समझती हूँ कि साफ़ कहना ज्यादा ठीक होगा..


जागरण जंक्शन का जीवन अपनी मद्धम चाल से सीधा सादा चल रहा था..झील के शांत पानी में पत्थर फेंका श्रीमान संदीप कुमार जी ने…आप ने सर्वप्रथम अपनी विशेष उफनती हुई आक्रामक शैली के लेखन से सब को आकृष्ट किया.. अपनी रचनाओं का विषय भी ऐसा चुना जिन पर आम तौर पर भारतीय समाज में एक “टैबू” होता है..फिर भी, इस में कोई शक नहीं कि आप इतना लाजवाब लिखते है कि जिस किसी ने भी इनका एक भी लेख पढ़ा , वो सारे के सारे पढने से खुद को रोक न सका… इसी लिए इतने कम समय में इनके फैन्स की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी भी हो गयी….इनके तेवर कुछ ऐसे रहे कि कमेन्ट करने वालों की तो जान की खैर ही न रही..फिर भी व्यंजन में तीखी मिर्च के आवश्यक सुस्वादु फ्लेवर की तरह ये सब जगह पाए जाने लगे…और इन के प्रशंसक इन के द्वार पर धरना दे कर बैठने लगे…


प्रशंसकों की ज़बान का क्या है..कुछ भी कहने की कोई सीमा ही नहीं होती है….लेखनी की प्रशंसा तो जागरण जंक्शन पर हर भाषा में , हर विधि से होती ही रहती है, आप की कलम को सलाम……, लेखनी को नमन…., हम आप के मुरीद…. , बंदापरवर……जैसी प्रेमसिक्त प्रतिक्रियाएं मिलना आम बात है..और सच पूछा जाये तो लेखक की चाह भी यही होती है कि जो बात वो लिख रहा है उस को सब लोग समझें और सराहें..
इसी क्रम में, साधना जी ने ज़रा सूफियाना अंदाज़ में कहा कि उन को “संदीप जी की लेखनी से इश्क हो गया है..”..उन्हों ने ये बात कहीं भी नही लिखी थी कि उनको संदीप जी से व्यक्तिगत रूप से इश्क हो गया है..अगर ऐसा हुआ भी होता तो मैं नहीं समझती कि कोई इस तरह की बात सार्वजानिक मंच पर कहेगा….जो लोग ब्लॉग लिखने के लिए नेट का प्रयोग कर रहे हैं उन्हें नेट के और भी फायदे पता होते हैं…इश्क का मुज़ाहरा करना होगा तो जेजे का मंच उपयुक्त जगह नहीं है ये सब को पता है..


महान साहित्यकार शरतचंद ने कहा है कि “संसार का सब से आसान कार्य किसी स्त्री को कलंकित करना है…..”


यदि कोई लड़की स्वच्छ मन से थोडा बोल्ड हो कर बात करे तो इस का यह अर्थ तो कदापि नही कि उसे कलंकित किया जाये …इसी मंच पर खुद मैं, दीप्ती जी, महिमा जी आदि भी बहुत दोस्ताना भाषा में बातें करते हैं..


साधना जी एक सम्मानित परिवार की सुसंस्कृत लड़की हैं,  सोच कर देखिये कि अगर ये सब बातें उन के माता पिता तक पहुंचे तो उन्हें कैसा लगेगा….हंसी मज़ाक में कही गयी बातें बहुत विकराल रूप भी धारण कर सकती हैं….देखा जाये तो साधना जी व्यक्तिगत रूप से मेरी कोई नहीं लगती हैं लेकिन न्याय भी कुछ होता है..जिस दिन से उन के ऊपर ये आरोप लगे हैं उस दिन से मैं कुछ अच्छा महसूस नहीं कर रही हूँ. हालाँकि मेरी खुद भी एक बार उन से नाइत्ताफाकियाँ हुई थीं लेकिन जब उन्हों ने बात को समझा तो सॉरी कहने में ज़रा सी भी देर नहीं लगायी..इस बात का ये मतलब तो नहीं है न कि मैं ग्रंथि बना कर किसी से दुश्मनी साध लूँ….अगर कुछ गलत हुआ है तो उसे इंगित तो करना ही पड़ेगा….


इस के पहले भी जब तमन्ना जी के “रामदेव के मुंह पर लोकतंत्र की स्याही ” नामक ब्लॉग पर लोगों ने उनपर अभद्र किस्म की टिप्पणियां करनी शुरू की थी तो भी मैं ने ही उन सब को फटकारा था , हालाँकि तब मुझे मंच पर आये एक महीना भी नही हुआ था..


आदरणीय राजकमल जी बेहद सरल, सज्जन और न्यायप्रिय इंसान है..विगत दिनों मंच से दूर रहने के कारण मंच की दिन प्रतिदिन की गतिविधियाँ उनकी नज़र में नहीं रहीं..लोगों के विशेष अनुरोध पर समय न होते हुए भी उनको दरोगाई का काम करना पड़ा..लेकिन प्रतिक्षण वो पछताते ही रहे…


लेकिन इस पूरी कवायद में आश्चर्यजनक तथ्य सामने आये..किसी ने सोचा भी न था कि ऐसे ऐसे परदे उठें गे कि लोग हतप्रभ रह जायें गे…कमेन्ट दर कमेन्ट होते गए…अन्य लोगों की व्यक्तिगत कुंठाएं सामने आती गयीं….जो जिगरी दोस्त “ये दोस्ती हम नहीं तोडें गे.. ” की धुन पर जीवन भर साथ चलने का वादा कर बैठे थे , वो एक दूसरे के प्रति आग उगलने लगे ….


कुछ ऐसे लोग भी सिपाही बनने को तैयार हो गए , खुद जिन के ताज़ातरीन ब्लॉग पर किसी लड़की के नाम की फेक आई डी से अश्लील कमेन्ट पोस्ट थे , और हद तो ये कि उन के द्वारा उन भद्दे कमेंट्स का रसिक अंदाज़ में उत्तर भी दिया गया था….मैं ने वहां एक मज़ाकाना कमेन्ट लिखा…..”……..अभिषेक मनु संघवी विथ डर्टी पिक्चर……”…..वो सारे कमेंट्स फिर बाद में मेरी प्रतिक्रिया के साथ ही तुरंत डिलीट कर दिए गए….


तो मैं अपनी आदत से मजबूर ……मैं ने राजकमल जी के ब्लॉग पर एक लैटिन कहावत लिखी और जान बूझ कर अर्थ नही लिखा , सिर्फ ब्लोगर्स की जागरूकता देखने के लिए ……और मज़ा देखिये कि बेहद सम्माननीय , हम सब के प्यारे , सीधे सच्चे “श्री वाहिद काशीवासी ” साहब को क्या मज़ाक सूझा कि वो उस को “रशियन गाली ” कह कर अंतर्धान हो गए……जब कि मैं व्यक्तिगत रूप से जानती हूँ कि वाहिद साहब हिंदी, इंग्लिश और उर्दू के सिवा अन्य विदेशी भाषाएँ भी जानते हैं…


और फिर सभी ने अपने अपने ढंग से समीक्षा शुरू की..किसी ने एक बार भी नहीं सोचा कि क्या मैं किसी के लिए असभ्य भाषा का प्रयोग कर सकती हूँ ????
मैं ने अपने पहले ब्लॉग से लेकर आज तक कभी भी असम्मानजनक , असंसदीय भाषा का प्रयोग नही किया है, ये सभी जानते हैं …लेकिन…..सब ने आँख मूँद कर विश्वास कर लिया कि सरिता सिन्हा के पास अब शब्द ख़त्म हो गए हैं और वो गाली गलौज का सहारा ले रही है….


मैं यह सब देख कर मानसिक सदमे में आयी ज़रूर थी, लेकिन यहाँ के लगभग सभी दोस्त फेसबुक पर भी मौजूद हैं …सब ने अपने अपने ढंग से मुझे उबारने में मदद की..विशेष रूप से मैं आनंद प्रवीण जी , अनिल कुमार जी और राजकमल जी की व्यक्तिगत रूप से आभारी हूँ …..
एक और भयानक रहस्य का उद्घाटन हुआ कि जे जे जैसे साहित्यिक मंच पर भी कुछ मानसिक रूप से विकृत लोग आदरणीय निशा मित्तल जी जैसे सम्मानित ब्लोगर के नाम से फेक आई डी बना कर अनाप शनाप कमेंट्स किया करते थे …
जे जे फीडबैक की ओर से क़ानूनी कार्यवाही की चेतावनी दिए जाने पर ही ये नकली खाते बंद किये गए…


इस पूरे प्रकरण में एक बहुत दुखदायी बात हुई …


श्री विक्रमजीत सिंह जी को अपनी रचनायें डिलीट नहीं करनी चाहिए थी…रचनायें संतान की तरह होती है..उन से आत्मिक लगाव होता है..जो कुछ भी मंच पर हुआ, वो सब पीछे छोड़ कर नए सिरे से शुरुआत करना ही श्रेयस्कर होगा…..हम सब का विक्रम जी से अनुरोध है कि यदि उन्हों ने अपनी रचनायें सेव कर रखी हों तो कृपया उन्हें फिर से पोस्ट कर दें …. अन्यथा समूचा मंच इस बात का गुनाहगार होगा ….


जाते जाते एक बात और कहना चाहूँ गी..संदीप जी से……..आप बहुत खूबसूरत लिखते हैं ..आप ही की भाषा में कहूँ तो बिलकुल आँखों से संगीत सुनने जैसा ….लेकिन माफ़ कीजिये, ज़रा विनम्र हो जाइये… ज़रा सोचिये , कोई आप के सामने स्वादिष्ट, सुगन्धित भोजन रखे और प्यार से खिलाने के बजाय कहे….”ले ठूँस ले…” तो आप चाहे कितने भी भूखे हों, पर खाने का मन नहीं होगा…


प्यार देने में क्या जाता है? ? मीठा बोलने में क्या नुक्सान है?? शिक्षित और अशिक्षित का फर्क भाषा से ही तो पता चलता है ….हम दब्बू बेशक न रहें, लेकिन अपनी सच्चाई को अपने ज्ञान के लिफाफे में तो प्रस्तुत कर सकते हैं….आप ने बहुत पढ़ रखा है आप से क्या कहूँ कि..”सत्यम ब्रूयात च प्रियं ब्रूयात “…..


हर बात के पीछे कोई और ही बात छुपी होती है…हम जो देखते हैं वास्तव में वो सत्य न हो कर उस के पीछे कुछ और होता है…..
जो कुछ भी घटता है वो प्रत्यक्ष के अतिरिक्त असीमित अप्रत्यक्ष भी होता है…


“सरे आइना मेरा अक्स है, पसे आइना कोई और है…”


हमारे अपने जागरण मंच पर जो कुछ भी घटित हुआ है वो हम सब का अपना सुख दुःख है..परिवार की तरह…सभी कुछ पीछे छोड़ कर एक नयी शुरुआत की जा सकती है..पहले जैसे ही …..अपनी अपनी भावनाओं को साझा कर के हंसने रोने का साथी बनने के लिए…..कमेन्ट दर कमेन्ट करने के लिए…..विचारों से विरोधी लेकिन मन से आत्मीय बनने के लिए………अपने लिए …आप के लिए……..सब के लिए………


“ज़ौक में ताना-ए-अगयार का शिकवा क्या है,
बात कुछ सर तो नहीं है कि उठा भी न सकूँ,
मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त,
मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूँ….”


पुनश्च….आप जैसा भी चाहें, मुझे कमेन्ट दे सकते हैं..”गुस्ताख़ी माफ़ ” मुझे किसी का डर नहीं है…


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