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प्रिय आफरीन,
हम तुम्हे पहले से कहाँ जानते थे. वो तो जब तुम्हारे अपने पापा ने तुम्हारी जान लेने की कोशिश की तब अख़बार वालो ने हमें तुम्हारे बारे में बताया…पूरे पाँच दिन तुम ज़िन्दगी और मौत की लड़ाई लडती रही , लेकिन अफ़सोस …..हार गयी…..हमारा तुमसे कोई रिश्ता कहाँ है, लेकिन इन पांच दिनों में, एक एक पल हम तुम्हारे लिए बेचैन रहे , और आज …जब तुम चुपचाप जिंदगी से लड़ते लड़ते, हार कर अपनी दुनिया में लौट गयी…..बता नहीं सकते कि हम तुमसे कितने शर्मिंदा हैं…तुम्हारी नन्ही सी जान ने इन पाँच दिनों में जो कुछ भी झेला है, वो शायद कोई अपनी पूरी ज़िन्दगी में नहीं झेलता होगा…..
तुम तो चली गयी, सिर्फ तीन महीनो के लिए हमारी दुनिया में आयी थी , लेकिन फिर भी , हम तुम्हे अपने साथ ले जाने के लिए कोई खूबसूरत याद न दे सके….
इस संसार का सदस्य बनने के पहले ही दिन से , जब तुम धरती पर आयी भी नहीं थी, तब से ही अपनी माँ को अपने पापा द्वारा प्रताड़ित किये जाते हुए चुपचाप देख रही थी…जुर्म भी क्या था ….कि वो अभागी “तुम्हारी” माँ बनने वाली थी…एक लड़की की…वो बेचारी भी तो अपने पति की यातना झेलने के लिए मजबूर थी…कुदरत की दी हुई सब से अनमोल ख़ुशी…. संतान, जो एक औरत सिर्फ और सिर्फ अपने पति के साथ बाँटना चाहती है , उसे भी उस के पति ने बाँट दिया…तुम्हारा एक और सहोदर जो तुम्हारे साथ ही आने वाला था …वो तुम से ज्यादा कमज़ोर निकला और दुनिया में कदम रखने से पहले ही वापस हो गया…..
तुम किस उम्मीद में चली आयी..तुम्हे लगा होगा कि शायद तुम्हारा मासूम , गुलाबी, परियों जैसा चेहरा देख कर वो, तुम्हारा पिता तुमसे प्यार करने लगे गा…नादान…क्या जानती थी कि राक्षस हमेशा राक्षस ही रहे गा…
उफफ्फ्फ्फ़…….तुम्हे कैसा लगा होगा जब तुमने अपने पापा को दूध में ज़हर मिलाते हुए देखा होगा..हम समझ सकते हैं , …तुम ने चाहा ज़रूर होगा कि तुम्हारी माँ , जिसे उस शैतान ने बहाने से बाहर भेज दिया था…वो ही तुम को दूध पिलाये…लेकिन मजबूर, नाज़ुक तीन महीने की बच्ची तुम , मुंह खोलने के सिवा कुदरत ने अभी तुम को कुछ सिखाया भी तो नहीं था….तुम्हारी किलकारियां भी उस दानव को मोहित न कर सकीं…उसे एक बार भी याद न आया कि तुम उस की अपनी संतान थी…अपना खून…किस तरह तुम्हें सिगरेट से जलाने के लिए उस जानवर के हाथ उठे होंगे…कैसे वो नन्ही परी जैसी मासूम गुडिया को झिंझोड़ पाया होगा…….जब उसका खून ही पानी बन चुका था तो क्या कहें…
क्या कमी थी उस को….उस के पिता, बड़े भाई, खुद वो…सभी अच्छा कमाते खाते थे..अपना खुद का दोमंजिला मकान था …फिर भी वो दानव न जाने और क्या पाने की आस में संतान के रूप में एक “लड़का” चाहता था… भिखमंगों की तरह तुम्हारे नाना से लाखों रुपये मांगता रहता था….
महज़ १९ साल की उम्र में तुम्हारी माँ ने दुनिया के सारे रंग देख लिए…अपने से लगभग दुगनी उम्र के इंसान से शादी हुई, फिर शादी के बाद से एक पल की ख़ुशी भी उसे नसीब न हुई…कुदरत ने तुम्हारे रूप में उसे एक प्यारा खिलौना दिया भी तो उसे भी उस राक्षस ने छीन लिया …क्या दोष था उस का…यही न कि वो एक गरीब बाप की बेटी है जो कबाड़ बेच कर अपना और अपने परिवार का गुज़र बसर करता है.. कहाँ से तुम्हारे पापा को “दहेज़” नाम की भीख देता…..
खैर….अब हम तुम से माफ़ी मांगने के सिवा क्या कह सकते हैं…बैंगलोर जैसे आधुनिक टेक्नोलॉजी युक्त शहर में जहाँ चौबीसों घंटे उजाला रहता है, रफ़्तार कभी थमती नहीं है, वहां एक अँधेरा कोना आज भी मौजूद है.. तुम्हारे पापा और उस जैसे और कुछ लोगों के सड़े गले विचारों रूपी अँधेरा कोना…..
हम तो आज तुम्हारे चले जाने के बाद आंसू बहा कर , दो चार दिनों में तुम्हे भूल भी जायें गे..पर इस समाज का क्या करें????? कब तक गरीब बापों की अभागी लड़कियां , अपनी कमज़ोरी की सजा भुगतें गी….वो अपराध जो उन्हों ने किया ही नहीं…उस के लिए उन्हें कब तक प्रताड़ित किया जाता रहे गा????? तुम तो बच गयीं.. लेकिन जो हैं, उन का क्या होगा??????
एक बार फिर से कहते है……हमें माफ़ कर दो आफरीन ……हम तुम्हे बचा नहीं सके…..
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