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स्नेही मंचवासियों,
आज मैं आप के साथ अपने जीवन की एक सच्ची घटना शेयर करने जा रही हूँ.मुझे नही पता कि आप इस को सच समझें गे या मेरी बकवास, लेकिन जो भी है, इस आश्चर्यजनक घटना ने मुझे काफी कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया …
गुज़रे सालों में मैं ऐसी सकारात्मक सोच न रखती थी. अपने जीवन से बेहद निराश , हताश और टूट चुकी थी. यूँ देखा जाये तो मुझे किसी चीज़ की कोई कमी न थी,एक आम औरत को सुखी व संतुष्ट रहने के लिए जो कुछ चाहिए वो सब मेरे पास था, और इतना कि औरों को रश्क भी हो सकता था लेकिन जिंदगी का एक अँधेरा पहलू ऐसा भी था जिस के बारे में न तो मैं किसी को बता ही सकती थी और जो मेरे सिवा कोई समझ ही न सकता था….
मैं इस हद तक हताश हो चुकी थी कि दिनोंदिन बीमार होती जा रही थी. निराशा व कुंठा ने मेरी संवेदनाओं तक को मार डाला था . मुझे न ख़ुशी की बात पर हंसी आती थी न किसी तकलीफ में आंसू आते थे . अकेले रहना रास आने लगा था.बस इतना होश बाकी था कि मैं मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करती थी कि “प्रभु, मुझे सिर्फ तुम्हारे दिए हुए दो बच्चों की ज़िम्मेदारी पूरी कर लेने तक का ही जीवन देना . यदि उस के बाद मैं आत्महत्या भी कर लूँ तो मुझे इस पाप का दोष न देना क्यूँ कि ये पापित शापित जीवन तुम्हारा ही दिया हुआ है.”
इसी तरह घुटन में जीते हुए मैं अकेले बैठती तो घंटों “फ्लैश बैक ” में रहती थी. वो बचपन का गुज़रा हुआ ज़माना याद करती , पुराने बिछड़ चुके साथियों और अपनों के साथ बिताये हुए हंसी ख़ुशी के खिलखिलाते पलों को याद कर कर कर के घुटती. बस हर घडी हर पल मौत का इंतज़ार करती….
इसी तरह एक दिन मुझे अचानक ये ख्याल आया कि मेरे कुछ ऐसे अज़ीज़ जो मुझसे बिछड़ कर इतनी दूर हो चुके हैं कि मुझे उनका और उन्हें मेरा कोई पता ठिकाना ही मालूम नही रह गया है. जीवन की भाग दौड़ में कब इतना समय बीत गया कि धरती के साथ साथ लोग भी घूमते घूमते न जाने कितने अक्षांश और देशान्तरों को पार करते हुए कहाँ से कहाँ निकल गए . मैं ने सोचा कि अगर इसी तरह मैं मर जाऊं तो अपनी जीवन गाथा को भी अपने साथ ही ले जाऊं गी. कोई तो ऐसा हो, जो मेरी भावनाओं का उत्तराधिकारी हो.. मुझे याद आया एक ऐसा शख्स ….. जो सही मायने में मेरी परिस्थितियों को मेरी नज़र से देख सकता था, मेरी तरह से समझ सकता था….लेकिन अफ़सोस , गर्दिश-ए-ज़मीनो आसमान ने उसे मुझ से इतना दूर कर दिया था कि मुझे उस के पता ठिकाने के बारे में कोई भी जानकारी न थी…
आखिरी सूरत में मैं ने ध्यान का सहारा लिया..ईश्वर के सामने मैं निशब्द गिड़गिडाती थी .कहती थी कि अगर उस से मिले बिन मैं मर गयी तो फिर तुम्हारी सत्ता में कोई विश्वास न करेगा … आँखें बंद कर के उसका चेहरा अनंत व्योम में तलाशती थी …..आँखों से आंसू गिरने का एहसास तब होता था जब गर्दन के पास आँचल गीला लगने लगता था ..उस को पुकारते पुकारते मैं पागल हो उठी थी…
एक दिन …अचानक…मेरे घर की लैंड लाइन पर एक कॉल आयी…..जिसे मेरे बेटे ने रिसीव किया..पूछने वाले ने मेरे बारे में पूछा और मेरा मोबाइल नंबर ले कर मुझे कॉल किया ..
मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा , क्यूंकि मैं फोन पर उसी से बात कर रही थी जिससे मिलने के लिए मैं ने रो रो के ईश्वर, अल्लाह, जीसस और वाहेगुरु को पुकारा था. उस ने मुझे बताया कि वो आज कल अमेरिका में रहती है. कुछ दिनों से उसे ऐसा लगने लगा था कि मैं कहीं दूर से उसे आवाज़ दे रही हूँ. वो कह रही थी और मैं हतप्रभ हो कर सुन रही थी…….
मेरी ही तरह उससे भी मेरा पता ठिकाना खो चुका था.उस ने मुझ से कहा कि तुम्हारी अचानक आने वाली पुकारों ने मुझे इतना परेशान किया कि मैं ने तुम्हे ढूँढने के लिए इन्टरनेट का सहारा लिया. इत्तेफाक से मेरी लैंड लाइन का फोन जिस नाम से है वो उसे याद था . वो नाम डेटा बेस में डाल कर महीनों , रात- दिन , वो मेरा नंबर तलाश करती रही..कई महीनों के अनथक परिश्रम के बाद नंबर तो मिल गया लेकिन शहर का कोड नही मिल पा रहा था . गलत कोड लगा लगा कर उसने अंतर्राष्ट्रीय कॉलों में न जाने कितने रुपये बर्बाद किये …फिर आखिरकार मुझ को ढूंढ ही लिया….
इस घटना ने मेरे मन मस्तिष्क को झिंझोड़ डाला…विज्ञान व टेक्नोलॉजी का योगदान तो रहा ही लेकिन मैं ने सोचा कि वो कौन सी अदृश्य ताक़त थी जिस ने मेरी आत्मा से निकली हुई चीत्कार उस तक पहुंचाई और जिस से विवश हो कर उस ने मुझे ढूंढ ही लिया…
मैं ने तो ईश्वर, अल्लाह, जीसस, वाहेगुरु और जितने भी देवी देवताओं के नाम जानती थी सब को पुकारा था….अब मैं किसे धन्यवाद दूं और इस महान आश्चर्यजनक घटना का श्रेय किस भगवान को दूं….
क्या भगवान ने मेरे हिन्दू होने के नाते मेरी मदद की …
या फिर अल्लाह ने महानता दिखाई, और धर्म का भेद भुला कर मेरा काम करवाया…
नही तो फिर जीसस वाहेगुरु या किसी और देवता ने सहायता की ….
या मैं इन सब से हट कर प्रगतिशील होने का ढोंग करते हुए ईश्वरीय सत्ता को नकार कर इसे एक साधारण घटना समझूं…
मैं ऐसा नहीं कर सकती ….मुझे कभी भी नहीं लगा कि “ईश्वर डर एवं अज्ञान की संतान है”…
कोई न कोई शक्ति तो ऐसी है जो इस पूरे ब्रह्माण्ड को चला रही है. हम उसे चाहे जो भी नाम दें. हर धर्म में इस बात को अपने अपने हिसाब से समझाया गया है. चाहे वह आदि कालीन वैदिक धर्म हो या देश काल परिस्थिति के अनुसार पनपने वाले धर्म..हर जगह एक ही बात समझाई गयी है कि मानव मात्र आपस में प्रेम से रहें जिस से कि प्रसन्नता फैले और सकारात्मक उर्जा का संचार हो…सार यही है बस समझाने का तरीका अलग अलग है…
वास्तव में “धर्म” शब्द का अर्थ ही है “धारण करना “……सुन्दर, आचार विचार व्यवहार धारण करिए, और क्या…….
सारा खेल “सकारात्मक उर्जा” का है , जो अच्छे आचार विचार वाले हर व्यक्ति को बिना किसी भेद भाव के मिलती है, चाहे वो हिन्दू हो या मुस्लिम या किसी और धर्म का हो , या कम्युनिस्ट ही क्यूँ न हो..
धार्मिक रूप से विचारशील होने और धर्मांध होने में बहुत अंतर है…
ध्रुव तो छोटा बच्चा था और उसकी माँ सुनीति अपने पति कि उपेक्षा के कारण कुंठित थी , सो उस ने कुढ़न में उस नन्हे से बच्चे को भगवान को ढूँढने के लिए जंगल में भेज दिया .ऐसा हम लोगो ने कहानी में पढ़ा है…लेकिन मुझे यह लगता है कि उस विचारवान माँ ने अपने बच्चे को यह सिखाया होगा कि तुम खुद इस लायक बनो कि तुम्हारा ये पिता जो आज तुम्हे गोद में नहीं बैठा रहा है कल को सारी दुनिया के सामने तुम्हे अपना बेटा कह कर खुद को गौरवान्वित महसूस करे …ध्रुव ने समाज में वो स्थान पाया होगा जो अत्यधिक सम्मानजनक यानि “ईश्वर कि गोद ” जैसा होगा ..कालांतर में यह घटना एक कहानी के रूप में सामने आयी . जो सभी धर्म के लोगो के लिए शिक्षाप्रद है ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि हिन्दू जंगल में जा कर भगवान् को ढूँढें और मुस्लिम अल्लाह को…
लेकिन मेरा ये व्यक्तिगत अनुभव है कि जब भी कभी भीषण आतंरिक कष्ट के क्षणों में , आँखें बंद कर के किसी आतंरिक शक्ति को पुकारिए तो बहुत शांति मिलती है… अब मैं ये नहीं बता सकती कि मुझे भगवान सहायता पहुंचाते है या अल्लाह ने अपने दरवाज़े मेरे लिए बंद कर रखे हैं , कि वो सिर्फ नमाज़ पढने वालों की ही मदद करें गे…
मैं ज्यादा क्या कहूँ, मेरी अपनी छोटी सी सोच है जो व्यक्तिगत अनुभवों , और पठन पाठन के आधार पर विकसित हुई है…मेरा यह मानना है कि देने वाला कोई न कोई सर्वशक्तिमान कहीं ज़रूर है..चाहे उन प्राकृतिक शक्तियों को अपनी अपनी श्रद्धा के हिसाब से कोई नाम दे दीजिये या फिर निराकार निर्गुण मानिये ..लेकिन कुछ तो है जो यह समूचा विश्व आश्चर्यजनक रूप से संतुलित रहता है.
सूर्य , चंद्रमा, ग्रह , उपग्रह अपनी चाल नहीं बदलते….
पेड़ों से बीज और बीजों से वही पौधे तैयार होते हैं…
एक छोटे से सेल से समूचा जीव तैयार हो जाता है जो अपने पुरखों से रत्ती भर भी भिन्न नहीं होता..
जीवन चक्र में निर्धारित हर घटना अपने समय से घटती है और सम्बंधित हार्मोन अपना रोल बिना किसी उत्प्रेरण के अदा करते हैं…
जो जैसे कर्म करता है उसे एक न एक दिन वैसा ही प्राकृतिक न्याय मिलता है…..
क्या कोई मुझे बता सकता है कि इन घटनाओं को कौन संचालित करता है.??????….
चलिए हम प्रगतिशील होने के नाते ईश्वर के अस्तित्व से इंकार करते हैं ….
तो फिर बताइए कि ब्रह्माण्ड में होने वाली हर छोटी बड़ी घटना को सुचारू रूप से चलाने वाली “सर्वशक्तिमान सत्ता ” को क्या नाम दें……
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