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प्यार इन्सान की ज़रूरत है.

Sincerely yours..
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फिर से प्यार का मौसम आया है.
मगर…….प्यार करने वालो की खैर नहीं. वो और ज़माना था जब अवतार, पैगम्बर, संत, सभी प्यार करने का सन्देश फैलाया करते थे. अभी प्यार पर रोक है. फिलहाल इस एक दिन 14 फरवरी के लिए. साल के शेष दिन आप जो मर्ज़ी आये कर लीजिये गा. लेकिन इस एक दिन के लिए मान जाइये. क्यूँ कि अब प्यार के मायने बदल चुके हैं. अब प्यार में कमिटमेंट के लिए कोई जगह नहीं है. एहसास न हो न सही, लगाव न हो न सही, आप को सिर्फ 14 फरवरी के दिन प्यार का ढोंग रचाने के लिए एक पार्टी ही तो अरेंज करनी है.. फिर कभी कर लीजिये गा, जिस दिन शिव सेना या विश्व हिन्दू परिषद् वाले कोई और मोर्चा सम्हालने निकले हों..14 फरवरी को तो सुना है कि वो किसी भी लड़के और लड़की को अकेले घूमते हुए देख लेते हैं तो भांवरें डलवा देते हैं..फिर तो अच्छा ही है.परिवार वाले शादी को न तैयार हों तो फिर इस सुनहरे मौके को हाथ से जाने न देना चाहिए, बाद में कह तो सकते हैं न कि “हम क्या करें भाई, वो तो शिव सेना वालों ने पकड़ के ज़बरदस्ती शादी करवा दी तो बस अब निभाना ही है……”
नाम बदनाम होता है बेचारे संत वैलेंटाइन का जो सारी उम्र सच्चे प्यार और सुकून को तरसते रहे. बेचारे आज से 1743 साल पहले ही 14 फरवरी को रोम के सम्राट क्लौडिअस द्वारा उन का विरोध करने के जुर्म में सारी उम्र जेल में रह कर स्वर्ग सिधारे . बस इतनी सी गलती हो गयी कि जेलर की बेटी को एक ख़त में “yours valentine” लिख बैठे . उस दिन से आज तक जो उन महान आत्मा के नाम को बट्टा लगा तो दूर न हो पाया.
आप ही बताइए जो लोग 14 फरवरी को प्यार का त्यौहार मनाने निकलते हैं उन का सच्चा प्यार क्या किसी के रोकने से रुके गा?? और जिन्हें प्यार जैसी पवित्र भावना को मौज मस्ती का साधन बनाना है, उन्हें भी शेष 364 दिन कौन रोक सके गा?
प्यार तो मनुष्यता की एक पहचान है, जो इन्सान को इन्सान बनाती है.. एक भावना है .. नियामत है जो सिर्फ और सिर्फ इन्सान को ही मिलती है. प्यार की ही वजह से इन्सान “अशरफ -उल -मख्लुकात” यानी सभी जीवों में सब से उच्च स्तरीय है. और आप से कहा जाता है कि प्यार मत करो..तो क्या करो?? नफरत करो???
मैं कोई संत या अवतार नहीं हूँ कि कोई सन्देश दूँ तो लोग उस का अनुकरण करें लेकिन इतना जानती हूँ कि इंसान कि ज़िन्दगी में “प्रेम ” क्या स्थान रखता है.
क्या आप ने कभी महसूस किया है कि घनघोर उदासी में, जब ऐसा लगता है कि आप की तकलीफ सिर्फ आप की ही है, और कोई अपना उस तकलीफ को भांप कर आप का हाल पूछता है…
कभी भीड़ में खुद को अकेला महसूस करिए और कोई आप को देख कर मुस्कुरा दे..
कभी बहुत दिनों बाद कोई भुला हुआ दोस्त कॉल कर के “आई मिस यु ” कहे….
जब नींद न आ रही हो और माँ आ कर माथे पर हाथ फेरे….
जब देर से घर लौटिये और आप के पापा आप की चिंता में बाहर टहलते हुए मिलें ….
जब मन भारी हो और कोई अपना गले से लगा ले….
क्या है यह सब?? प्यार नहीं तो फिर और क्या है??? इंसान के सिवा ये नेमत और किसे नसीब है???

क्या इन सब बातों के लिए कोई तारीख निर्धारित है???
क्या यह सब भावनाएं सिर्फ लड़के और लड़की के बीच में ही होती हैं???
और अगर होती भी हैं तो इस में कौन सी मर्यादा का उल्लंघन है???
दरअसल होता यह है कि इंसान हर चीज़ को अपने नज़रिए से देखता है..खिड़की का शीशा अगर गन्दा है तो बाहर साफ़ कैसे दिखाई दे सकता है???

मेरी अपनी सोच के मुताबिक प्यार करने के लिए किसी दिन, तारीख, वजह या जगह कि नहीं बल्कि सिर्फ इन्सान होने की ज़रूरत है.
मेरा तो  संसार को यही सन्देश है कि अपने दिलों से नफरत के मैल को धो डालो और हर दिन, हर वक़्त, हर तारीख को, हर इंसान को प्यार करो…..
हर किसी को स्पेस दो ,खुल कर साँस लेने दो, जीने दो……
धर्म के नाम पर लड़ना छोड़ कर प्यार करो….
देशों की आपसी दुश्मनी भुला कर प्यार करो….
क्षेत्र, भाषा, जाति भुला कर प्यार करो…
जेंडर का भेद भुला कर मर्यादा से प्यार करो…..
हर अपने से , पराये से प्यार करो….
हर जीव से, हरियाली से प्यार करो…
बस…..जितना भी करो, सच्चा प्यार करो…..

मेरा आज 14 फरवरी को ही नहीं, हमेशा के लिए सारे विश्व को प्यार का सन्देश है, और मुझे नहीं लगता कि किसी को इस बात का बुरा मानना चाहिए.
अगर आप को बुरा लगा हो तो माफ़ करें, मैं हर्फ़-ए-हक कहती हूँ और इस के लिए हर सजा सुनने के लिए तैयार हूँ….

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