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अजीब इत्तेफाक होता है कि ३६६ दिनों में एक दिन सालगिरह का भी आ जाता है. अब इस उम्र में आने के बाद जन्मदिन की बधाइयो पर थैंक यु थैंक यु कहना बड़ा अटपटा सा लगता है, सच है वक़्त अपने साथ क्या कुछ छीन ले जाता है, पता ही नहीं चलता . जैसे कल ही तो हम जन्मदिन के लिए एक महीने पहले से इंतज़ार किया करते थे.सुबह का सूरज कुछ और ही रंग लिए रहता था.खाना पीना, घूमना, गिफ्ट्स जैसे बस आज ही सब कुछ पूरा कर लेना है. लगता था कि दिन कितनी जल्दी बीत गया. और अब है कि कुछ दिन पहले से ही मन डरने लगता है कि ज़िन्दगी का एक साल और ख़त्म हो गया……काफी कुछ करना था लेकिन कम ही कर पाए…पता नहीं जो इतनी सारी जिम्मेदारियां हैं, उन्हें पूरा करने के लिए ज़िन्दगी वक़्त देगी या नहीं…….शौक़ की जगह कर्तव्यों ने ले ली है…….अरमानो की जगह पर फ़र्ज़ याद आते हैं… और याद आते हैं वो……. जो जाड़े की ठंडी सुबह में रजाई को हलके से उठा कर बड़े ही प्यार से “हैप्पी बर्थ डे टू यु, बेटा” कहते थे और जाते जाते रजाई पर एक कम्बल भी डाल जाते थे…..
अब जब मेरे बच्चे रात के 12 बजते ही मेरी रजाई खींच कर “हैप्पी बर्थ डे” का नारा लगाते हैं तो मुझे उनको सर्दी लग जाने की चिंता सताने लगती है. और मैं कहती हूँ “बेटा, रजाई के साथ कम्बल भी ले लेना……”
आज मैं ज़रा स्वार्थी हो गयी हूँ….. अब मुझे पुरे विश्व की दुआएं चाहिए ताकि ज्यादा नहीं बस उतनी ज़िन्दगी मिल जाये जिस में मैं अपने हाथो से कुछ नेक काम कर जाऊं
और उसका प्रतिफल मेरे अपनों को मिले…………
जज़्बात कुछ और भी कहलवाना चाहते हैं, वक़्त हो तो आप भी सुन लीजिये….
ले गयी और एक साल ज़िन्दगी,
दे गयी कितने सवाल ज़िन्दगी,
कही जुड़ कर भी जुड़ सका न कुछ,
छूटा तो बहुत पर मिला न कुछ,
जैसे पहिया है घूम जाता है,
रास्ता पीछे छुट जाता है,
वक़्त गिरता रहे गा यूँ ही पत्तों की तरह ,
नए मौसम नए पत्तों की आमद होगी,
कौन फिर याद करे गा किसको,
गुज़िश्ता साल जैसे फूल हो डाली से गिरा,
इधर गिरा उधर ना जाने कब ,
कुचल गया किन पैरों से खबर ही नहीं…….
अच्छा ठीक है, आज बस इतना ही….अब मुझे “हैप्पी बर्थ डे” तो कह दीजिये …
और मेरी तरफ से….थैंक यु……….
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