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रंगीन लडकियों से दोस्ती करोगे?????

Sincerely yours..
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हाय, मैं हूँ नंदिनी, मुझसे दोस्ती करोगे, मैं रात भर रंगीन बातें करुँगी ……
मैं सुधा, तुम्हे चाहती हूँ, अगर तुम मुझसे दोस्ती करो गे तो हम रात भर चैट करें गे …..
मैं संजना हूँ, आपके शहरमें नयी हूँ, मुझे मेरे जैसे नौजवान दोस्त चाहिए जिन के साथ मैं जी भर के बातें कर सकूँ…..
संजना , सुधा और नंदिनी को तो दोस्त मिल गए, अब सुषमा के लिए दोस्त ढूंढिए जो उस के अकेलेपन का साथी हो सके……

आप के मोबाइल पर भी इसी तरह के मैसेज दिन में कई बार आते होंगे. आप को क्या लगता है? क्या इन नामो की वास्तविक लडकियां दोस्तों की तलाश में है? और यदि ये मैसेज सच्चे भी हों तो क्या हमारे देश की लड़कियों के यही संस्कार हैं जिन्हे मोबाइल कंपनियों वाले अपने बिजनेस को बढ़ने के लिए उपयोग कर रहे हैं??????? मुझे तो नहीं लगता की इस किस्म के एस एम् एस से प्रभावित हो कर कोई समझदार व्यक्ति इन फेक नामो वाली लड़कियों से दोस्ती करने के लिए कॉल बैक करता होगा……तो फिर यह मैसेज किस लिए इशु किये जाते हैं?

मैं बताऊँ, आज कल छोटी उम्र के नासमझ नौजवान बच्चे पढाई के लिए घर से निकलते हैं, शिक्षा के क्षेत्र में चूहा दौड़ के चलते प्रतिस्पर्धा इतनी बढ़ गयी है कि स्कुल जाने वाले बच्चे कोचिंग आदि के चक्कर लगा कर देर रात ही घर लौट पाते हैं. डरपोक माँ बाप अपने बच्चो की सुरक्षा को ले कर काफी चिंतित रहते हैं इसीलिए उन्हें मोबाइल देते हैं ताकि पल पल उनकी जानकारी लेते रहें, या बच्चा ही अगर किसी मुश्किल में फँस जाये तो उन्हें सुचना दे सके. छोटी उम्र के बच्चो के कच्चे दिमाग अभी इतने परिपक्व नहीं होते हैं कि वो झूटी सच्ची बातो का भेद समझ सकें. नयी नयी उम्र के नए नए होर्मोन उन्हें विपरीत सेक्स की भड़कीली बातो की ओर आकर्षित करते हैं. नतीजतन पढाई और काम की बातो से उन का मन उखड़ने लगता है. इन लुभावनी सेवाओं को यदि कोई नादानी में आ कर सब्स्क्राइब भी कर लेता है तो बैलेंस के पैसे खर्च करने और सस्ती सेक्सी बातो के सिवा कुछ नहीं मिलता है. बात तब और भी बिगडती है जब बच्चे इन बातो को अपने दिमाग से झटक नहीं पाते हैं फिर अपने साथ पढने वाले सहपाठी लड़के लडकियों को भी अस्वस्थ दृष्टि से देखने लगते हैं. कभी कभी तो बात इतनी बिगडती है की अपहरण, बलात्कार या हत्या जैसे जुर्म भी किशोरों के द्वारा हो जाते हैं.

इन बातो की चर्चा करने पर अक्सर यही जवाब मिलता है कि बच्चे को घर में अच्छे संस्कार मिलने चाहिए ताकि वो कोई गलत काम न करे, परन्तु सोचने वाली बात है कि जिस बच्चे कि अभी सीखने की उम्र है वो जितना घर के माहौल से सीखता है उतना ही बाहर के वातावरण और सामाजिक परिवेश से भी सीखता है. एक बच्चा जो देश का भविष्य है उस का समग्र विकास करने की पुरे समाज की ज़िम्मेदारी है.

कहते हैं की जहाज़ बंदरगाह पर सब से ज्यादा सुरक्षित हैं लेकिन क्या वो बंदरगाह पर ही खड़े रहने के लिए बने हैं??

ठीक इसी प्रकार बच्चा माँ बाप की गोद में सब से ज्यादा सुरक्षित है लेकिन उसे भी बड़ा हो कर परिवार, देश, दुनिया को कुछ देना है. तो उस के समुचित विकास में पुरे समाज का हाथ होना चाहिए.

टी आर ऐ आई रेगुलेशन के अनुसार अब मैसेज कार्ड के द्वारा एक दिन में २०० मैसेज किये जा सकते हैं. ज़रा इन मैसेजेस की बानगी देखिये……
kkrh ???(क्या कर रहे हो)
खाना खाया?
नींद नहीं आ रही यार..
लेक्चर उबाऊ है, टीचर को गोली मार दूं क्या?
मिस कॉल करू तो बालकनी में आ जाना ….
मरे गा तू ……
तेरी तो…

कुछ नहीं तो फिर तरह तरह के smiley ही आते हैं. आखिर फ्री मैसेज हैं कुछ भी लिखो,, क्या जाता है, पैसे की कीमत वसूलनी है लेकिन जो समय बीत रहा है वो क्या कीमत वसूले गा यह बात कैसे समझाई जाए.

क्या प्रशासन की यह ज़िम्मेदारी नहीं है की इस किस्म के भड़काऊ मैसेज और फ्री मैसेज कार्ड जैसी सुविधाओं को थोडा और नियम में बांधें???

यह सच है कि बच्चे का पहला सबक उस के घर से शुरू होता है, फिर भी आज की भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में सभी जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. अगर परिवार, समाज, सरकार सभी एक दुसरे की ज़रुरतो के लिए हों तो विश्व का रूप ही कुछ और होगा..

जनाब फैज़ अहमद फैज़ साहब ने अर्ज़ किया है……

आइये हाथ उठायें हम भी
हम जिन्हें (रस्म -ए -दुआ ) याद नहीं …………………… प्रार्थना करना
हम जिन्हें (सोज़ -ए -मोहब्बत) के सिवा …………………. मोहब्बत के दुःख
कोई बुत , कोई खुदा याद नहीं

आइये अर्ज़ गुजारें कि (निगार -ए-हस्ती) …………………. व्यक्तित्व का सौंदर्य
(ज़हर -ए -इमरोज़) में (शिरीनी -ए -फर्दान) भर दे…………. हैवानियत का ज़हर, इंसानियत की मिठास
वो जिन्हें (ताबे गरंबरी -ए -अय्याम) नहीं……………………. दिन भर के दुखो को सहने की ताक़त
उनकी पलकों पे शब् -ओ -रोज़ को हल्का कर दे

जिनकी आँखों को (रुख -ए -सुबह) का यारा भी नहीं…………सुबह का मुंह
उनकी रातों में कोई शमा (मुनव्वर) कर दे ……………………प्रकाशमान
जिन के क़दमों को किसी राह का सहारा भी नहीं
उनकी नज़रों पे कोई राह उजागर कर दे

जिनका दिन (पैरवी -ए -कज्बो -रिया) है उनको ………………..शासको के कानून मानना
हिम्मत -ए -(कुफ्र)मिले ,(जुर्रत -ए -तहकीक) मिले………………बग़ावत, छानबीन का दुस्साहस
जिनके सर (मुन्तजिर -ए -तेग -ए -जफा) हैं उनके ……………. धोखेबाजी की तलवार से कटने का इंतज़ार
(दस्त -ए -कातिल)को झटक देने की तौफीक मिले……………कातिल के हाथ

इश्क का(सर्र -ए -निहाँ जान -तपन) है जिस से…………………छुपी हुई बात की आंच
आज इकरार करें और तपिश मिट जाये
(हर्फ़ -ए -हक)दिल में खटकता है जो कांटे की तरह…………सच्ची बात
आज इज़हार करें और खलिश मिट जाये

आइये हाथ उठाएं हम भी……………

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